कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

हमारी पूरी क्लास में सोनम ही सब से होशियार छात्रा थी. हालांकि नर्सरी, केजी से बच्चों की असली होशियारी का पता नहीं चलता, लेकिन एक बात पक्की थी कि सोनम को पढ़ाई में बहुत ज्यादा दिलचस्पी थी. क्लास में पढ़ाई गई हर बात वह दिलोजान से ग्रहण कर लेती थी. मैथ्स के टेबल्स हों या इंग्लिश के नेम्स औफ द बर्ड्स... एनिमल्स... कलर्स हों या... औफ ट्रांसपोर्ट... हर चीज वह एक ही दिन में याद कर लेती थी. उस का हस्ताक्षर बहुत ही सुंदर था. और अपना निजी सामान वह बड़ी सहजता से संभाल कर रखती थी. उस का स्कूल बैग, लंच बौक्स, वाटर बोटल... हर चीज बड़े सलीके से रखी रहती. क्लास में दिया गया हर काम वह झट से पूरा करती. और अपने पोलियोग्रस्त पैर को सहलाते हुए तकरीबन दौड़ते हुए ही आभा के पास आ कर अपना काम चैक करना चाहती... मैं कभीकभार उसे उस की कापी मांगती तो कुछ गरमा कर, हंस कर कहती, ‘‘पहले मैम को दिखाऊंगी...’’

हम दोनों फिर उस पर खूब हंस पड़ते थे... सोनम देखने में भी काफी सुंदर थी. उस का मासूम चेहरा और नटखट सी आंखें पहली ही नजर से किसी को भी आकर्षित करती थी.

जिस दिन सोनम की मां ने अपनी निजी समस्या मुझे बताई थी, उस दिन से मैं और आभा स्कूल खत्म होते ही सोनम का खास ध्यान रखने लगे थे. हालांकि उस दिन के बाद एकदो बार ही सोनम के दादाजी सोनम को घर लिवाने आए थे, मगर आभा ने उसी वक्त बड़े सख्त और तीखे स्वर में उन्हें बता दिया था कि सोनम अब सिर्फ उस के मांबाप के साथ ही घर वापस जाएगी...

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...