Writer-आशीष दलाल
चाचाजी आराम से सोफे पर बैठे हुए टीवी देख रहे थे और चाची उन से कुछ दूरी पर नीचे फर्श पर बैठी हुई थीं. दो पल इधरउधर की बातें कर चाचाजी से मुद्दे की बात छेड़ दी.
पहले तो चाचाजी उस की बात मानने को तैयार ही न हुए, पर फिर बारबार एक ही बात दोहराते रहने पर उस के आश्चर्य का पार तब रहा, जब चाचाजी ने सारी बात जानने के बाद भी उस की बात को हलके अंदाज में लेते हुए उसे इस बात को परिवार की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए यहीं पर खत्म कर देने को कहा.
संकेत ने उन की बात पर अपनी असहमति दर्शाते हुए पुलिस में शिकायत कर कानून का सहारा लेने की बात छेड़ी तो चाचाजी उलटे उस पर ही गुस्सा हो उठे.
‘पगला गया है संकेत. तेरे छोरे के संग रेप हुआ है, यह बात जान कर सारी दुनिया तुझ पर और तेरे छोरे पर ही हंसेगी. छोरे का बाप हो कर अपने बेटे का ही ध्यान न रख सका. फिर उस के बड़ा होने पर यह बात जानते हुए कौन बाप अपनी छोरी तेरे छोरे के संग ब्याहेगा. बात अभी घर में है तो घर में ही रहने दे. नमन अभी छोटा है. कुछ ही दिनों में सब आप ही भूल जाएगा.’
‘पर चाचाजी... रोहित...’ संकेत ने कुछ कहना चाहा, तो चाचाजी ने उसे टोक दिया.
‘उस की खबर तो मैं ले लूंगा. तू चिंता न कर. एक बार उसे पूना से घर आने दे. मारमार कर उस की हड्डीपसली एक कर दूंगा. फिर कभी ऐसा गंदा काम करने की हिम्मत न करेगा.’