Writer-आशीष दलाल
‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तेरी मम्मी तेरे पास है न बेटा. सचसच बता कि क्या हुआ?’ सुनंदा ने नमन को विश्वास में लेते हुए बड़े ही प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा.
मां के स्नेह का स्पर्श और हूंफ पा कर नमन ने पिछले दिनों रोहित की उपस्थिति में अपने साथ हुआ सारा घटनाक्रम सुनंदा को कह सुनाया.
नमन की बात सुन कर सुनंदा के हाथपैर ढीले पड़ गए. वह वहीं पलंग पर सिर पकड़ कर बैठ गई. उस ने नमन का सिर अपनी गोद में ले लिया और उस के बालों को सहलाते हुए अपनी आंखों में उभर आए आंसुओं को पोंछने लगी.
‘तू घबरा मत बेटा. मैं हूं न,’ कुछ देर तक कुछ सोचने के बाद सुनंदा ने नमन के गालों को सहलाते हुए कहा और वापस रसोईघर में चली गई.
परीक्षाएं पूरी होने के बाद स्कूल की छुट्टियां होने से नमन घर पर ही था. सुनंदा ने अपने औफिस में फोन कर तबीयत ठीक न होने का बहाना कर छुट्टी ले ली, लेकिन सारा दिन घर पर रह कर वह व्यथित और परेशान थी. वह जल्दी से जल्दी नमन के पापा को रोहित की अपने बेटे के संग की गई घिनौनी हरकत के बारे में बता देना चाहती थी. उस ने दोपहर को संकेत को फोन कर सबकुछ बताना चाहा, लेकिन संकेत किसी मीटिंग में व्यस्त था. सो, उस से सुनंदा की बात न हो पाई. एकदो बार उस ने सोचा भी कि पड़ोस में जा कर चाची से बता कर उन्हें उन के सपूत रोहित की काली करतूत से अवगत करा आए, लेकिन फिर संकेत के बिना इस मामले में महिला हो कर अकेले पड़ना ठीक न समझा.
ये भी पढ़ें- एक रिश्ता प्यारा सा: माया और रमन के बीच क्या रिश्ता था?
शाम को जैसे ही संकेत घर आया, तो सुनंदा ने नमन के संग हुआ सारा घटनाक्रम उसे कह सुनाया.
‘तुम्हें कोई गलतफहमी हुई होगी सुनंदा. रोहित को मैं अच्छी तरह से जानता हूं. वह ऐसा लड़का नहीं है. अपने भतीजे के संग वह ऐसी गिरी हुई हरकत कभी कर ही नहीं सकता,’ सुनंदा की बात सुन कर संकेत को अपने चचेरे भाई की हरकत पर विश्वास ही न हुआ.
‘संकेत, तुम्हारे अपने बेटे के संग गलत हुआ है. 12 साल का बच्चा बिना किसी खराब अनुभव के यह बात कैसे कह सकता है? तुम रोहित को अभी फोन लगा कर पूछो. सारी बात साफ हो जाएगी,’ संकेत का ठंडा रवैया देख कर सुनंदा जैसे चीख उठी.
‘ठीक है, करता हूं, लेकिन नमन कहां है?’ सुनंदा को शांत करते हुए संकेत ने नमन की पूछपरख करते हुए पूछा.
‘सुबह से अपने कमरे में है. बाहर ही नहीं आ रहा है वह. थोड़ीथोड़ी देर में कुछ सोचते हुए कहीं खो जाता है,’ सुनंदा ने जवाब दिया.
‘ठीक है. तुम समझा कर उसे बाहर ले कर आओ. मैं रोहित को फोन करता हूं,’ संकेत ने पैंट की जेब से मोबाइल निकालते हुए सुनंदा से कहा.
दो बार रोहित को फोन लगाने के बाद संकेत ने झुंझला कर मोबाइल टेबल पर रख दिया… तब तक सुनंदा नमन को ले कर उस के पास आ कर बैठ गई थी.
संकेत ने नमन के सिर पर बड़े ही प्यार से हाथ फेरा. नमन उसे आज कुछ सहमा सा नजर आ रहा था. उस का उदास चेहरा देख संकेत रोहित का नाम ले कर गुस्से से बड़बड़ा उठा, ‘मार डालूंगा साले को.’ फिर वह आगे कुछ बोलने ही जा रहा था, लेकिन फिर अपना गुस्सा पी कर चुप हो गया.
‘एक बार रिंग पूरी हो गई और दूसरी बार उस ने फोन काट दिया,’ संकेत ने सुनंदा की तरफ देखते हुए कहा. उस के स्वर में खीज समाई हुई थी.
ये भी पढ़ें- क्षितिज ने पुकारा- भाग 1: क्या पति की जिद के आगे नंदिनी झुक गई
‘उस के मन में चोर हैै, तभी तो बात करने से भी कतरा रहा है. तुम जा कर चाचाजी से बात करो,’ सुनंदा परेशान हो उठी.
‘सुनंदा, चाचाजी से यह बात कैसे कर सकते हैं? आई मीन… मैं उन्हें किस शब्दों में यह सब कहूं? मुझ से ना कहा जाएगा.’
नमन सुनंदा के पास बैठा हुआ सुनंदा और संकेत की बातें सुन कर सारे घटनाक्रम की गंभीरता को समझने का यत्न कर रहा था. उसे अब तक तो समझ आ चुका था कि उस के संग कुछ गलत हुआ है, लेकिन वह यह समझ नहीं पा रहा था कि उस के पापा इस बात को रोहित अंकल के पापा से कहने से क्यों झिझक रहे थे.
‘संकेत. तुम्हारा अपना बेटा छला गया है. तुम्हें अंदाजा भी है. उसे इस बात की वास्तविकता जब बड़े होने पर समझ आएगी, तो उस पर क्या बीतेगी. जो भी हो, तुम्हें चाचाजी से बात कर रोहित की इस हरकत के बारे में बता कर उन्हें उस की काली करतूतों के बारे में बताना ही होगा. मैं अपने बेटे को न्याय दिला कर ही रहूंगी,’ सुनंदा अपनी जगह से उठ कर संकेत के पास जा कर खड़ी हो गई.
‘सुनंदा, तुम मेरे दर्द का अंदाजा नहीं लगा सकती, लेकिन इस बात को बड़े बुजुर्गों के सामने इस तरह से कहने से एक मर्यादा मुझे रोक रही है. समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं, कैसे कहूं?’ संकेत अपनी जगह से खड़ा हो गया.
‘तुम्हारे भाई के आड़े जब कोई संस्कार और मर्यादा गलत काम करते हुए नहीं आए तो तुम्हें तो केवल जो हुआ वही सचसच बोलना है. इस में कौन सी मर्यादा तुम्हारें आड़े आ रही है संकेत?’ संकेत का व्यवहार सुनंदा की समझ से परे था.
‘सुनंदा, तुम्हें भी अच्छी तरह से मालूम है कि ऐसी बातें हमारे परिवार में खुल कर नहीं की जा सकती हैं. फिर मां होने के नाते तुम्हें नमन का खयाल रखना चाहिए था,’ कहते हुए संकेत झुंझला उठा.
‘कहना क्या चाहते हो संकेत? जो कुछ हुआ, उस में सारा दोष मेरा ही है? मुझे क्या पता था कि तुम्हारे भाई की नियत में खोट है, वरना अपने बेटे को कभी भी उस घर में अकेले उस राक्षस के संग न छोड़ती. पिता हो कर तुम ने तो अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए अपने परिवार से ही लड़ने की हिम्मत नहीं है. सारा दोष तुम मेरे सिर पर डाल कर अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते,’ कहते हुए सुनंदा की आंखें भर आईं.
‘तो क्या करूं? जा कर खंजर घुसा दूं उस के पेट में?’ कुछ न कर पाने की विवशता में संकेत गुस्से से तिलमिला उठा.
अपने मम्मीपापा को अपनी वजह से आपस में लड़ते हुए देख नमन सहम गया. उसे मन ही मन अपने पर अफसोस होने लगा कि उस ने यह बात मम्मी को बताई ही क्यों. उस के मन में एक डर घर कर गया कि अब रोहित अंकल को पापा मार डालेंगे और उस का पाप रोहित अंकल के कहे अनुसार उस पर ही लगेगा.
सहसा रोते हुए वह दौड़ कर अंदर अपने कमरे में चला गया. उसे इस तरह अंदर जाते देख सुनंदा ने एक पल संकेत को घूरा और फिर नमन के पीछे अंदर चली गई.
सारे मसले में कुछ न कर पाने की बेबसी से संकेत बेचैन हो उठा. बेवजह वह कमरे में इधर से उधर चलने लगा, तभी हिम्मत जुटा कर वह घर से बाहर निकल गया और पांच कदम चल कर पड़ोस में स्थित अपने चाचाजी के घर के अंदर चला गया.