Writer-आशीष दलाल

‘कब तक लड़ता रहेगा वह अपनेआप से. रोहित यहां से दूर पूना में था तो एक तसल्ली थी कि कम से कम उसे अपनी नजरों के सामने न पा कर नमन सारी बात पीछे छोड़ जल्दी आगे बढ़ जाएगा, पर अब तो वह नालायक वापस यहां आ कर चाचाजी की दुकान संभालने लगा है. उसे देखदेख कर मेरा बेटा कुंठाभाव से तिलतिल कर मर रहा है,’ सुनंदा साड़ी के पल्लू से आंखों में आ गए आंसुओं को पोंछते हुए संकेत के पास हीबैठ गई.

‘सुनंदा, समय किसी को नहीं छोड़ता. हमारे बेटे का भी समय आएगा. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा,’ संकेत उसे सांत्वना दे कर चुप करने लगा.

समय बीतने के साथ नमन 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चला गया. इस बार जब वह छुट्टियों में घर आया तो रोहित के 5 साल के बेटे चिंटू को समयबेसमय अपने घर आते देख वह उस पर झुंझलाने लगा. उसे देख नमन को अपने बचपन की घटना याद आ जाती और राहित पर अपना आक्रोश व्यक्त न कर पाने से वह एक द्वेषभाव उस के बेटे पर रखने लगा था. आज एक बार गुस्सा कर उसे वापस भेजने के बाद वह थोड़ी ही देर में वापस आ गया. इस बार उस के हाथ में एक खिलौने वाली कार थी. वह चुपचाप आ कर नमन के पास खड़ा हो गया.

‘भैया, मेरी कार चल नहीं रही है. ठीक कर दो न. मैं आप को इस में बिठा कर घुमाने ले जाऊंगा,’ चिंटू की मासूमियत भरी बात सुन कर नमन के चेहरे पर मुसकराहट छा गई. उस ने उस के गालों को सहलाया और उस के हाथ से कार ले कर उसे ठीक करने लगा. थोड़ी ही देर में चिंटू की कार फर्श पर दौड़ने लगी. फिर तो चिंटू बारबार आ कर नमन के संग खेलता रहता था.

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