बिहार में चुनाव हो गए और नीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री बन गए. इस बार नीतीश कुमार बदलेबदले नजर आ रहे हैं. बिहार के 2020 और 2025 के दोनों विधानसभा चुनावों में खास बात यह थी कि भाजपा के विधायकों की संख्या जदयू के विधायकों से अधिक थी. इस के बाद भी भाजपा ने नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री कबूल कर लिया.
2025 के चुनाव नतीजों से पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का पद नहीं देगी. भाजपा ने नेता और गृहमंत्री अमित शाह ने कहा भी था कि ‘मुख्यमंत्री का नाम चुनाव नतीजों के बाद तय कर लिया जाएगा.’ अमित शाह के बयान का यह मतलब था कि नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा तैयार नहीं है.
बिहार में नीतीश कुमार का क्रेज था. नीतीश कुमार का नाम चल रहा था. ऐसे में भाजपा ने ‘सीएम फेस’ के मुद्दे पर अपने पैर वापस खीचें.
विपक्ष लगातार इस मुददे को हवा दे रहा था कि भाजपा नीतीश कुमार को साइड कर रही है. नीतीश कुमार का साथ भाजपा के लिए जरूरी और मजबूरी दोनों है. केंद्र सरकार को चलाने में नीतीश कुमार और चन्द्र बाबू नायडू का सहयोग जरूरी हैं. ऐसे में बिहार में भाजपा को अपनी ज्यादा सीटों के बाद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना मजबूरी था, क्योंकि केंद्र के लिए नीतीश कुमार जरूरी हैं.
इस उहापोह के बीच भाजपा का एक सपना फंसा हुआ है. वह पूरे भारत को जीत कर चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहती है. बिहार को जीत तो लिया पर राज तो नीतीश का ही चल रहा है. यह भाजपा को सहन नहीं हो रहा है. इस के लिए उस ने बीच का रास्ता यह निकाला कि नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बैठ तो जाएं पर वह पावरलेस रहें. वह केवल रबर स्टैंप हों. इस योजना के तहत बिहार में भाजपा ने शतरंज की गोट बिछा दी है.
बिहार में मुख्यमंत्री का पद भले ही नीतीश कुमार के पास हो पर उन के साथ दो उपमुख्यमंत्री बना दिए गए हैं. इन में पहले सम्राट चौधरी हैं और दूसरे उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा हैं. सम्राट चौधरी को गृह विभाग मिलने से उन का पावर अधिक हो गया है. सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में तैयार किया जा रहा है.
26 सदस्यों की टीम में नीतीश कुमार के अलावा 9 नए चेहरे शामिल है. इन में भाजपा के 14, जदयू के 8, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के 2, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोकमोर्चा (आरएलएम) के एकएक सदस्य शामिल हैं. नीतीश की इस कैबिनेट में एक मुसलिम मंत्री और 3 महिलाएं हैं. पिछली नीतीश सरकार के मंत्री रहे एक दर्जन से अधिक नेताओं को इस बार नीतीश की नई कैबिनेट में जगह नहीं मिली. इन में भाजपा के 15 और जदयू के 6 सदस्य हैं. इन में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा भी हैं.
नीतीश कैबिनेट में जातीय समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा गया. सब से अधिक 8 मंत्री सामान्य वर्ग से हैं, 6-6 पिछड़ी और अतिपिछड़ी जाति से और 5 अनुसूचित जाति से मंत्री है. भाजपा की ओर से पूर्व उपमुख्यमंत्री रेणु देवी के साथ नीरज कुमार सिंह, नीतीश मिश्रा, जनक राम, हरि सहनी, केदार प्रसाद गुप्ता, संजय सरावगी, जीवेश कुमार, राजू कुमार सिंह, मोतीलाल प्रसाद, कृष्ण कुमार मंटू, संतोष सिंह और कृष्णनंदन पासवान के नाम शामिल हैं. इस मंत्रिमंडल में सब से खास बात यह है कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम से उन के बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाया गया. वह न तो विधायक हैं न ही विधान परिषद् के सदस्य. उन को 6 माह के भीतर सदस्य बनना पड़ेगा.
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