कुछ ही दिनों में फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप भारत में शुरू होना वाला है. इसी बीच अंडर-17 वर्ल्ड कप की ट्राफी कोच्चि पहुंच गई है. ट्राफी के भारत पहुंचने पर रंगारंग कार्यक्रम और राज्य की लोककला की झाकियों के साथ स्वागत किया गया.
केरल के खेल मंत्री एसी मोइदीन ने जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम परिसर में खेल प्रशंसकों और प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति में ट्राफी का अनावरण किया. ट्राफी का अनावरण करने के बाद केरल के खेल मंत्री ने कहा कि फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप को सफल बनाने के लिए राज्य विभाग के साथ-साथ स्पोर्ट्स क्लब, स्कूलों और कालेजों के माध्यम से व्यापक प्रचार अभियान किया जा रहा है.
इस ट्राफी को आज अम्बेडकर स्टेडियम में आयोजित मिशन इलेवन मिलियन समारोह में रखा जाएगा. भारत में ट्राफी के सफर को समाप्त करते हुए, कोच्चि का किला ट्राफी की मेजबानी करेगा.
अगले महीने से शुरू हो रहे फीफा अंडर-17 फुटबाल विश्व कप के लिए भारत ने 21 सदस्ययी टीम की घोषणा कर दी गई है. इस टूर्नामेंट में भारत, अमेरिका, कोलंबिया और घाना के साथ ग्रुप-ए में है. भारत अपना पहला मुकाबला अमेरिका के साथ 6 अक्टूबर को खेलेगा. इसके बाद कोलंबिया और घाना के साथ क्रमश: 9 और 12 अक्टूबर को नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में मैच होगा. इस टूर्नामेंट का आयोजन भारत के 6 शहरों में होने वाला है.
कुछ ऐसी है फीफा अंडर-17 विश्व कप के लिए भारतीय टीम
गोलकीपर – धीरज सिंह, प्रभसुखन गिल, सनी धालीवाल
डिफेंडर – बोरिस सिंह, जितेंद्र सिंह, अनवर अली, संजीव स्टेलिन, हेंनरी एंटोनी, नमित देशपांडे
मिडफिल्डर – सुरेश सिंह, निनथोइगंबा मितई, अमरजीत सिंह, अभिजीत सरकार, कोमल, लालेनगमवाइ, जीकसन सिंह, नोनदंबा लोरेम, राहुल कनलोए प्रवीन, मोहम्मद शाहजहां
फारवड– राहीम अली, अनिकेत जाधव
फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम में चुने गए खिलाड़ियों की कहानी संघर्ष की दास्तां है. टीम में शामिल खिलाड़ियों में कोई दर्जी का बेटा है, कोई बढ़ई का तो किसी की मां रेहड़-पटरी पर सामान बेचती है. टीम के 21 खिलाड़ियों में से ज्यादातर ने अपने अभिभावकों को संघर्ष करते देखा है. बावजूद इसके वे इस खेल में देश का प्रतिनिधित्व करने के अपने सपने को पूरा करने के करीब हैं.
सिक्किम के 17 वर्षीय कोमल थाटल के पास फुटबाल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और वह प्लास्टिक से बनी गेंद से खेलते थे. थाटल ने गोवा के ट्रेनिंग कैंप से बताया, ‘मेरे अभिभावक दर्जी हैं और मेरे पैतृक गांव में उनकी छोटी-सी दुकान है. बचपन में मैं कपड़े या प्लास्टिक से बनीं गेंद से फुटबाल खेलता था’.
थाटल के पिता अरुण कुमार और मां सुमित्रा अपनी थोड़ी-सी कमाई में से उनके लिए फुटबाल किट खरीदने के लिए पैसे जमा किए.
संघर्ष की ऐसी ही कहानी अमरजीत सिंह कियाम की भी है जो टीम के कप्तान बनाए गए हैं. अमरजीत के पिता मणिपुर के छोटे से शहर थाबल में खेती और बढ़ई का काम करते हैं. उनकी मां वहां से 25 किमी दूर इंफाल में मछली बेचती हैं.
अमरजीत ने कहा, ‘मेरे पिता किसान हैं और खाली समय में खेती करते हैं. मां मछली बेचती है लेकिन खेल से मेरा ध्यान ना भटके इसलिए वे मुझे कभी भी काम में हाथ बटाने के लिए नहीं कहते थे’.
अमरजीत ने कहा, ‘मेरे चंडीगढ़ फुटबाल अकैडमी में आने के बाद माता-पिता से बोझ थोड़ा कम हुआ क्योंकि वहां रहने, खाने और स्कूल का खर्च भी अकैडमी ही वहन करती है’.