पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का युवाओं पर भरोसा दिखाने के कारण भारतीय क्रिकेट टीम को सबसे महानतम खिलाड़ियों में से एक महेन्द्र सिंह धोनी मिले. यह दावा एक किताब में किया गया है. लेखक अभिरूप भट्टाचार्य की नई किताब ‘‘विनिंग लाइक सौरव : थिंक एंड सक्सीड लाइक गांगुली’’ में भारतीय टीम के पूर्व कप्तान को दूरदृष्टि और सबसे तेज दिमाग वाले क्रिकेटरों में से एक बताया गया है. बंगाल के इस खिलाड़ी ने मैच फिक्सिंग प्रकरण के बाद सचिन तेंदुलकर की जगह कप्तानी की बागडोर संभाली और एक जुझारू टीम का गठन किया.
सौरव गांगुली को युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ, जहीर खान, वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह जैसे खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के साथ ‘टीम इंडिया’ और ‘मेन इन ब्लू’ की अवधारणा बनाने का श्रेय दिया जाता है. किताब के मुताबिक, ‘‘गांगुली का मंत्र सरल था : उनका मानना था कि अगर युवा प्रतिभाशाली है तो उसे खुद को साबित करने का पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिये. वह सुनिश्चित करते थे कि टीम में ऐसे खिलाड़ी को शांत माहौल मिले और एक असफलता के बाद उसे बाहर नहीं किया जाए.’’
किताब के मुताबिक, महेंद्र सिंह धोनी इस नीति के सबसे बेहतर उदाहरण में से एक है. जिन्हें पहली चार पारियों में असफल रहने के बाद भी मौका दिया गया और अपनी पांचवीं पारी में पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने 148 रन की पारी खेली. इस एक पारी के बाद धोनी का करियर पूरी तरह से बदल गया.’’
महेंद्र सिंह धोनी आगे चल कर भारतीय टीम के कप्तान बने और उन्होंने 2007 में भारत को आईसीसी टी-20 विश्व कप और 2011 में एकदिवसीय विश्व कप के अलावा चैम्पियंस ट्रौफी का खिताब भी दिलवाया.
रूपा प्रकाशन की इस किताब में कहा गया, ‘‘अगर गांगुली ने धोनी पर भरोसा नहीं दिखाया होता तो भारतीय क्रिकेट टीम को उसका सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर बल्लेबाज नहीं मिलता.’’ भट्टाचार्य इससे पहले ‘‘विनिंग लाइक विराट : थिंक एंड सक्सेस लाइक कोहली’’ जैसी किताब लिख चुके हैं.
किताब में दावा किया गया कि गांगुली टीम में सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के बीच सामांजस्य बनाने में कामयाब रहे. संकट के समय टीम उनसे मार्गदर्शन लेती थी. भट्टाचार्य ने गांगुली की तुलना पाकिस्तान के महान खिलाड़ी इमरान खान और श्रीलंकाई दिग्गज अर्जुन रणतुंगा से की जिन्होंने नए सिरे से टीम का गठन किया और ऊंचाई पर ले गये.
किताब में कहा गया कि ग्रेग चैपल विवाद को छोड़ दें तो टीम के पहले विदेशी कोच जौन राइट और दूसरे खिलाड़ियों से उनके संबंध शानदार थे. उनकी कप्तानी में खिलाड़ी एक टीम की तरह खेलते थे और टीम की सचिन तेंदुलकर पर निर्भरता कम हुई.