55वर्ष के बाद टीम इंडिया इंगलैंड के दौरे पर 5 टैस्ट मैचों की सीरीज खेल रही है. लेकिन टीम इंडिया की सब से बड़ी मुसीबत यह है कि वह विदेशी धरती पर उछाल लेती गेंदों के आगे मात खा जाती है. वैसे भी कप्तान महेंद्र सिंह धौनी और उन के मौजूदा साथियों को लगातार 5 टैस्ट मैचों की सीरीज खेलने का अनुभव भी नहीं है. युवा खिलाडि़यों में जोश तो है लेकिन अपने खेल के प्रदर्शन को दिखाते हुए उन्हें यह साबित करना होगा कि वे विदेशी धरती पर भी लोहा मनवा सकते हैं. वर्ष 1959 में 5 टैस्टों की सीरीज की बात करें तो उस दौरान टीम इंडिया की भारी फजीहत हुई थी और उन्हें 0-5 से हार का मुंह देखना पड़ा था. अगर इंगलैंड में टैस्ट सीरीज की बात करें तो अब तक टीम इंडिया 16 टैस्ट सीरीज खेल चुकी है और उसे महज 3 में जीत हासिल हुई है और एक मैच को टीम इंडिया ड्रा कराने में कामयाब रही है.

यह टैस्ट सीरीज कप्तान धौनी के लिए असली टैस्ट है. धौनी और उस के युवा साथी खिलाड़ी अच्छी तरह जानते है कि विदेशी धरती पर टैस्ट मैच जीतना उतना आसान नहीं है. खुद धौनी का रिकौर्ड विदेशी पिचों पर अच्छा नहीं है. धौनी की कप्तानी में भारत 23 मैच खेल चुका है जिस में महज 5 मैचों में जीत हासिल हुई है और उसे 11 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है जबकि 7 मैच ड्रा रहे हैं. विदेशी धरती पर धौनी फेल ही रहे हैं. वे 23 मैचों में 32.61 की औसत से 1174 रन ही बना पाए हैं.

टीम इंडिया का सारा दारोमदार गेंदबाजों पर टिका हुआ है. वर्ष 2007 में राहुल द्रविड़ की कप्तानी में 3 टैस्ट मैचों की सीरीज में तेज गेंदबाज जहीर खान और लेग स्पिनर अनिल कुंबले ने अपना जौहर दिखाया था और भारत की 1-0 से जीत हासिल हुई थी. लेकिन अब दोनों गेंदबाज संन्यास ले चुके हैं, इसलिए धौनी के सामने यह बड़ी चुनौती है कि मौजूदा टीम में गेंदबाजों पर विशेष ध्यान दें.

बहरहाल, कई बार विश्व विजेता बन चुकी टीम इंडिया और धौनी ब्रिगेड को टैस्ट सीरीज के कमतर परिणामों से न सिर्फ उबरना होगा बल्कि इस टैस्ट सीरीज पर खिताबी जीत हासिल कर उन आलोचकों के मुंह भी बंद करने होंगे जो ?टीम इंडिया को सिर्फ फटाफट क्रिकेट का ही उस्ताद मानते हैं, टैस्ट मैचों के लायक नहीं.

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