खेल को खेल ही रहने दो

इन दिनों आईपीएल की खुमारी लोगों के सिर चढ़ कर बोल रही है. जिसे देखो टीवी से चिपका बैठा है. इस बीच अगर किसी चीज की कमी खल रही है तो वह है पाकिस्तानी खिलाडि़यों की. क्रिकेट के दीवानों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि बहुत जल्द भारत और पाकिस्तान के बीच टैस्ट सीरीज होने की संभावना है. दोनों क्रिकेट बोर्डों में सहमति बन गई है और इंतजार है सरकार के संबद्ध मंत्रालयों से मंजूरी मिलने का. दरअसल, पिछले 8 वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई टैस्ट सीरीज नहीं हुई है क्योंकि वर्ष 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमलों के बीच ऐसा माहौल बन गया कि दोनों टीमें टैस्ट सीरीज नहीं खेल पाईं. माना जा रहा है कि इसी वर्ष दिसंबर में दोनों टीमें आपस में भिड़ सकती हैं और दोनों देशों के बीच क्रिकेट के जरिए कूटनीतिक रिश्ते सुधर सकते हैं. लेकिन ये बातें केवल कहने की होती हैं, जमीनी धरातल पर कुछ नहीं होता. अगर रिश्ते सुधारने हैं तो दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को मिल कर बातचीत करनी होगी क्रिकेट मैचों से बात नहीं बनेगी.

पाकिस्तान के आम नागरिक खुद आतंकवाद से पीडि़त हैं और वे सुकून से रहना चाहते हैं पर यह भी सच है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देता है. अब जब वह उस के लिए नासूर बन गया है तो बौखला गया है और अलगथलग पड़ गया है. भारत पाकिस्तान से बात करना नहीं चाहता. खेल को पहले धर्म बना कर प्रचारित करना फिर उसे आपसी संबंधों को सुधारने में इस्तेमाल करना फुजूल की कारस्तानी है. आईपीएल एक कैसीनो से ज्यादा कुछ नहीं है, जहां दुनियाभर के सट्टेबाज खिलाडि़यों को अपनी उंगली पर नचाते हैं. अगर क्रिकेट के इस जुए से हर देश के खिलाड़ी अपनी जेबें भर रहे हैं तो पाकिस्तानी खिलाडि़यों को दूर क्यों रखा जाता है. जिस तरह पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने पर विवाद उत्पन्न किया जाता है उस से दोनों देशों की अवाम में परस्पर देशों के लिए नफरत का जहर जरूर भर जाता है. इसलिए जरूरी है कि खेल की आड़ में कूटनीतिक संबंधों को सुधारने की फर्जी कवायद से बचें और असल मुद्दों पर बातचीत करने की दिशा में आगे बढ़ें.

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विश्व की सब से बड़ी भिड़ंत

जब अमेरिका के बौक्सर फ्लौयड मेवेदर और फिलीपींस के बौक्सर मैनी पैक्वे के बीच भारतीय समयानुसार 3 मई को फाइट शुरू हुई तो लोग दिल थाम कर टैलीविजन पर चिपके रहे तो कई लाइव मुकाबला देखने के लिए लास वेगास के एमजीएम एरीना के उस स्टेडियम में दिल थाम कर बैठे रहे जहां बौक्सरों के बीच नहीं बल्कि 2 रिंग मास्टर्स के बीच मुकाबला था. आखिरकार वेल्टरवेट (67 किलोग्राम) के इस मुकाबले में फ्लौयड मेवेदर ने बाजी मार ली. ऐसा सुपर मुकाबला वर्ष 2002 में हैवीवेट टाइटल के लिए माइक टायसन और लेनौक्स लुईस के बीच और वर्ष 2011 में व्लादिमीर कल्चिको और डेविड हे के बीच देखा गया था. मुकाबले से पहले मेवेदर ने कहा, ‘‘एक लड़का जो कभी भूख से तड़पता हुआ सड़क किनारे सो कर रात गुजारता था आज वह इस मुकाम पर है. मैं आज जहां भी हूं, उस की मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. प्रशंसक पैसे खर्च कर रहे हैं तो वे अच्छा मुकाबला देखने के हकदार हैं.’’

मेवेदर की बात सच भी हुई क्योंकि जो दर्शक उस स्टेडियम में पहुंचे वे कोई मामूली दर्शक नहीं थे. वे भारीभरकम रुपए दे कर टिकट खरीद कर आए थे. पूरी दुनिया में इस मुकाबले के टीवी अधिकार कुल 35 मिलियन डौलर में बिके. इस के लिए बढ़चढ़ कर बोली लगाई गई. मैनी पैक्वे की जहां तक बात है तो पैक्वे सांसद भी हैं. फिलिपींस में उन की तसवीर के साथ डाक टिकट भी जारी हुए हैं. कई ऐक्शन फिल्मों में वे काम भी कर चुके हैं. पैक्वे पर कई वीडियो गेम भी हैं. मेवेदर को इस जीत से हीरों से जड़ी 6 करोड़ रुपए की बेल्ट इनाम में दी गई. इस के अलावा 1142 करोड़ रुपए भी उन के खाते में गए. वहीं, पैक्वे को 761 करोड़ रुपए दिए गए. मेवेदर दुनिया के सब से ज्यादा कमाई करने वाले बौक्सर हैं.

बौक्ंिसग की बात की जाए तो जितने भी बड़े नाम हैं वे सब के सब विदेशों के ही हैं. भारत में मैरीकौम और विजेंद्र सिंह के अलावा शायद ही कोई बड़ा नाम हो. मैरी कौम भी अब ढलान पर हैं और विजेंद्र सिंह का कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म सा दिख रहा है. ऐसे में बौक्ंिसग के मामले में विदेशों से मुकाबला करने की बात शायद हम अभी सोच भी नहीं सकते हैं.

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