धर्म के एजेंडे में कभी महिलाएं नहीं रहतीं. धर्म हमेशा से ही महिलाओं का शोषण करता रहा है, उन पर पबदियां लगाता है. लिहाजा, बीमारू राज्यों ने अपने शहरों का विकास महिलाओं की नजर से न कर के पंडेपुजारियों की नजर से किया है. यहां महिलाओं की लाइफस्टाइल को बदलने का दबाव पड़ता है. अब हालत यह है कि लड़कियां इन राज्यों में शादी करने से बच रही हैं.

करीब 37 साल पहले 1986 में देश में बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की पहचान बीमारू राज्यों के रूप में की गई थी. ‘बीमारू’ शब्द इन राज्यों के इंग्लिश नाम के पहले अक्षर से ही लिया गया है. जैसे बिहार ‘बी’, मध्य प्रदेश ‘मा’, राजस्थान ‘र’ और उत्तर प्रदेश ‘ऊ’ लिया गया है. बीते सालों में गंगा-यमुना नदियों में बहुत सारा पानी बह गया. साल 2000 में विकास के नाम पर इन राज्यों का विभाजन किया गया. बिहार से अलग हो कर झारखंड, मध्य प्रदेश से अलग हो कर छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से अलग हो कर उत्तराखंड अलग राज्य बने. इन राज्यों को बने भी 23 साल बीत गए लेकिन यहां केवल मुख्यमंत्री बदलते रहे, राज्य के हालात नहीं बदले.

बीमारू राज्यों की संख्या 4 से बढ़ कर 7 हो गई. इन प्रदेशों के विकास में जो पैसा लगना चाहिए था उस से नेताओं और अफसरों ने अपनी जेबें भरी, अपने और अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के लिए रिश्वतखोरी कर के पैसे जमा किए. बिजनैस और जमीन पर इन का कब्जा हो गया, जिससे शहरों में रहने वाले आम लोगों के जीवन में कोई सुधार नहीं आया. शहरों में जाति और धर्म के दबदबे ने लाइफस्टाइल पर अपना प्रभाव डाला. यहां के रहने वालों की सोच नहीं बदली है. ये अभी भी दकियानूसी और रूढ़िवादी सोच में जकड़े हुए हैं जिस की वजह से बड़े शहरों की लड़कियां इन राज्यों में शादी नहीं करना चाहतीं.

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