“अरे, यह तुम ने गले में इतना बड़ा कला धागा क्यों पहन रखा है, पहले तो नहीं पहना था,” नेहा ने कहा तो प्रिय रोंआसी हो कर कहती है, “आजकल मेरा पढ़ने में मन नहीं लग रहा क्योंकि मुझे किसी की नज़र लग गई है. इसलिए मैं ने यह पहना है.”

हर बार की टौपर प्रिय के मुंह से ये शब्द सुन कर नेहा आवक रह गई, बोली, “क्या तुम इन सब अंधविश्वासों को मानती हो? तुम्हारा पढ़ाई में मन इसलिए नहीं लग रहा क्योंकि पढ़ाई से ज्यादा वक्त तुम अपने नए बने बौयफ्रैंड को दे रही हो जिस के चलते क्लास में देर से आती हो और कुछ समझ नहीं पा रही हो. इस में यह काला धागा क्या कर लेगा? तुम अपने दोस्त से कहो कि क्लास में तुम्हें टाइम से ही जाना है. देखना, फिर कैसे पढ़ाई में तुम्हारा मन फिर से लगने लगेगा.”

यह सुन नेहा सोच में पड़ गई क्योंकि इस सच से तो वह मना नहीं कर सकती थी कि आजकल उस का मन पढ़ाई से ज्यादा अपने नए बने बौयफ्रैंड के साथ टाइम स्पैंड करने में ज्यादा लग रहा है.

किसी की नजर न लगे, इसलिए लोग नीबू, मिर्च, जूताचप्पल आदि घरों व गाड़ियों में टांगते हैं. स्टूडैंट भी शगुनअपशगुन को बहुत मानते हैं क्योंकि उन्होंने अपने परिवार को शुरू से ऐसी रूढ़ियों में बंधे हुए ही देखा है. उन के मन में डर होता है कि इन सब रिचुअल को फौलो नहीं किया, तो हमारे साथ कुछ खराब हो जाएगा.

यह बात समझ में आती है कि शुरू से जो माहौल देखो वही सही लगने लगता है. लेकिन अब तो आप घर से बाहर एक नई दुनिया में अपने दोस्तों के साथ हैं, उन से भी बहुतकुछ सीख सकते हैं. अगर एक दोस्त को लगता है कि मेरी दोस्त बहुत अच्छी है, हम बेस्ट फ्रैंड हैं, एकदूसरे की दोस्ती को पसंद करते हैं लेकिन उस की अंधविश्वासी बातों की वजह से मुझे अच्छा नहीं लग रहा और उस रिलेशन में सफोकेशन होने लगा है, तो अपनी अच्छी दोस्ती तोड़ने के बजाय अपने दोस्त को समझा कर उसे सही रास्ते पर लाएं.

अगर दोस्त किसी गलत रास्ते पर है तो उसे सही रास्ते पर लाना भी आप का काम है. लेकिन इस के लिए उसे कुछ इस तरह वैज्ञानिक तर्क दे कर समझाना होगा कि उसे बुरा न लगे और बात भी समझ आ जाए. अब यह दोस्त मेल टू मेल भी हो सकता है, फीमेल टू फीमेल भी हो सकती है और मेलफीमेल हो सकते हैं. लेकिन दोस्त को कुछ भी समझाने से पहले यह समझना होगा कि अंधविश्वास आखिर है क्यों.

अंधविश्वासी होने का कारण परवरिश में छिपा हुआ है

यह सिर्फ इन टीनएजर्स की ही बात नहीं है, दुनिया में ऐसे कई वैज्ञानिक, डाक्टर और इंजीनियर जैसे पढ़ेलिखे लोग हैं जिन का मन बिल्ली के रास्ता काटने पर आज भी शंकाग्रस्त हो उठता है कि कहीं कोई अनहोनी तो नहीं होगी. घर से निकलते वक्त छींक आने पर मन में आशंका होने लगती हैं कि कुछ अमंगल तो नहीं होगा. सवाल यह है कि पढ़ालिखा इंसान भी क्यों और कैसे अंधविश्वासी बनता है.

पढ़ेलिखे इंसानों के भी अंधविश्वासी होने का कारण उन की परवरिश में छिपा हुआ हैं. बचपन में अपने परिवार और आसपास के माहौल में इंसान जो कुछ देखता है, वो सब बातें उस के अवचेतन मन में गहरे तक बैठ जाती हैं. बचपन की इन्हीं सहीगलत बातों को इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ सही मानने लगता हैं. जब इंसान बड़ा हो कर पढ़तालिखता है, तो वह दुविधाग्रस्त हो जाता है कि सही क्या है और गलत क्या है. बचपन में वह देखता है कि घर का कोई भी सदस्य जब घर से बाहर जा रहा हो और ऐसे में यदि किसी को छींक आ जाएं, तो इसे अपशकुन माना जाता हैं. ऐसे में दो मिनट रुक कर फ़िर बाहर जाना चाहिए वरना अमंगल होने की आशंका रहती है. इस बात को कई बार देखनेसुनने पर यह बात उस के मन में घर कर जाती है.

लेकिन जब उन्हें इस का वैज्ञानिक कारण पता चलता है, तो उन्हें समझ आता है छींक आना एक सामान्य मानवीय क्रिया है और इस का शकुनअपशकुन से कोई वास्ता नहीं हैं. ऐसे में जो पढ़ेलिखे लोग, पढ़े हुए पर चिंतनमनन करते हैं, वे तो छींक आने को सामान्य क्रिया मानने लगते हैं. लेकिन उन में से भी कुछ लोगों के साथ यदि कभी ऐसा हुआ हो कि वे कभी किसी शुभ कार्य के लिए बाहर जा रहे हों और किसी को छींक आ गई और उस दिन उन का कार्य सफल न हुआ तो ऐसे में इन पढ़ेलिखे लोगों को भी विज्ञान से ज्यादा बचपन में सुनी हुई बातों पर विश्वास होने लगता हैं क्योंकि उस वक्त इंसान कार्य की असफलता से परेशान रहता है. इसी परेशानी में वह सही या गलत की पहचान नहीं कर पाता. इसलिए, आइए जानें कि सहेली को कैसे समझाएं.

सहेली को बताएं पीरियड्स में रोकटोक अंधविश्वास की देन है

कई सारे घरों में आज भी माहवारी को गंदी चीज माना जाता है. ऐसे में घर की बच्चियों, जिन की माहवारी की अभी शुरुआत हुई है, के दिमाग में भी पीरियड्स को ले कर कई सारी भ्रांतिया भर दी जाती हैं. उन्हें अचार छूने से मना कर दिया जाता है, तुलसी का पौधा छूने से रोका जाता है, कई घरों में तो किचन में भी जाने से रोका जाता है.

अगर आप की सहेली के घर में भी ऐसा होता है, तो उसे बातोंबातों में बताएं कि पीरियड्स में अचार छूने से आचार ख़राब नहीं होता. मैं तो हमेशा ही पीरियड्स में भरे डब्बे में हाथ डाल देती हूं, कभी आचार ख़राब नहीं हुआ, तुम भी एक बार ट्राई जरूर करना और अगर ऐसे हो तो मुझे बताना. आप के घर में पीरियड्स में कितनी आज़ादी है और सहेली के घर में कितनी रोकटोक, इस बारे में खुल कर बात करें. ऐसा करने पर वह जरूर समझेगी.

व्रतत्योहार में भूख से बेहाल हो तब समझाएं

जब सहेली का व्रत हो और वह भूख से बेहाल हो रही हो तब उस से पूछें कि ऐसा कर के तुम किस को खुश करना चाहती हो. अगर ऐसा इसलिए कर रही हो कि तुम्हारे अच्छे नंबर लाने की विश पूरी हो या फिर तुम्हें शादी के लिए मनपसंद जीवनसाथी चाहिए तो डियर, इस में व्रत करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि इस के लिए तुम्हें खूब मेहनत करनी होगी तभी एग्जाम में अच्छे नंबर आएंगे और जहां तक बौयफ्रैंड से शादी करने की बात है, उस के लिए उसे भी अपने पैरों पर खड़े होना होगा ताकि पेरैंट्स को इनकार करने की कोई वजह ही न मिले. इस में व्रत करने से सिर्फ टाइम और एनर्जी वेस्ट होगी.

मंदिर की जगह मौल ले जाएं

जब सहेली आप को मंदिर या किसी धार्मिक स्थल पर चलने को कहे तो मना न करें और अगली बार आप उसे अपने साथ मौल या फिर मूवी देखने ले जाएं और उसे बातोंबातों में बताएं कि मंदिर में तो हम कितना बोर हो गए थे, अब देखो साथ में कितने मज़े कर रहे हैं, शौपिंग, मूवी, खानापीना सब हो गया, कितना रिलैक्स हो गया. क्या ऐसा रिलैक्स हम मंदिर में कर पाते, नहीं न, तो फिर जब भी फ्री टाइम होगा, हम ऐसे ही आउटिंग के लिए चलेंगी. इस तरह करने पर उसे भी मंदिर के बजाए मौल जाना ही अच्छा लगने लगेगा क्योंकि कहीं न कहीं वह यह बात खुद भी जान चुकी होगी कि मौल में मंदिर जाने से ज्यादा एंजौयमैंट हुआ है.

ढोंगी बाबाओं के ढोंग के किस्से पढ़ाएंसुनाएं

आएदिन अखबारों में पढ़ने को मिलता है कि इन ढोंगी बाबाओं ने किस तरह जनता को लूटा है. इन बाबाओं के ऊपर रेप केस तक चल रहे हैं. ये किसकिस तरह जनता का माल लूट कर अपने महल खड़े करते हैं, कितनी लग्जरी गाड़ियों में चलते हैं. आएदिन कहीं न कहीं छपता ही रहता है. उन न्यूज़पेपर और मैगज़ीन की कटिंग इन्हें दिखाएं.

आसाराम बापू के भक्त उन पर अंधा विश्वास करते थे. नाबालिग से रेप के मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद आसाराम बापू फिलहाल राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद हैं. एक जमाने में आसाराम के अंधभक्तों की भरमार थी. आसाराम पर अपने आश्रम में बच्चियों का यौनशोषण और कई महिलाओं का रेप करने के आरोप हैं. राम रहीम को 2 साध्वियों का रेप करने के आरोप में 20 साल की सजा सुनाई गई है.

शनिधाम के संस्थापक दाती महाराज पर भी उन की एक 25 वर्षीया शिष्या ने आरोप लगाया था कि बाबा और उन के अन्य सहयोगियों ने दिल्ली व राजस्थान के पाली स्थित आश्रम में बलात्कार किया. दिल्ली के रोहिणी के विजयविहार इलाके में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम पर आश्रम चलाने वाले इस ढोंगी बाबा ने खुद को कलियुग का कृष्ण घोषित कर रखा था. इस वहशी बाबा ने 16 हजार महिलाओं के साथ संबंध बनाने का लक्ष्य रखा, लेकिन इसी की एक अनुयायी महिला को जब अपनी 4 बेटियों के साथ बाबा की घिनौनी करतूत का पता चला तो उस ने भी वहशी बाबा की पोल खोलने की ठान ली. वीरेंद्र देव पर अब तक अलगअलग थानों में रेप समेत 10 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं.

चित्रकूट के चमरौहा गांव के रहने वाले भीमानंद महाराज पर भी सैक्स रैकेट चलाने का आरोप लगा था. बाबा कौशलेंद्र उर्फ फलाहारी बाबा पर भी शिष्या का रेप करने का आरोप लगा. इस तरह के आरोप न जाने कितने बाबाओं पर लगे हैं. जब आप अपनी सहेली को रिसर्च के साथ यह सब बताएंगी और इंटरनैट पर दिखाएंगी तो अगली बार जब वह किसी बाबा के पास प्रवचन सुनने जाएगी तो दस बार सोचेगी जरूर.

बृहस्पतिवार को सिर न धोना अंधविश्वास कैसे है, उसे बताएं

रचना ने बृहस्पतिवार को सिर में तेल डाला था. उसे लगा कहीं जाना तो है नहीं, फिर बाल धोने की भी जरूरत नहीं है. लेकिन शाम के समय रचना की सहेलियों का फोन आया कि चलो, हम सब लोग घूमने जा रहे हैं. ऐसे में रचना कंफ्यूज हो गई कि इतने तेल में बाहर कैसे जाएं. सहेली ने कहा, उस में क्या है, सिर धो लो. लेकिन रचना ने कहा, आज बृहस्पतिवार है, सिर नहीं धो सकते. यह सुन कर सहेली की हंसी छूट गई. सीरियसली, इस वजह से प्रोग्राम कैंसिल कर रही हो?

सब ने बारबार बोला तो वह बिना हेयर वाश किए ही उन के साथ पब में आ गई. वहां आ कर अपने बालों की वजह से वह काफी एंबैरेसिंग फील कर रही थी. अलग ही बैठी थी. ऐसे में आस्था, जोकि उस की बेस्ट फ्रैंड थी, ने जा कर समझाया कि आज के टाइम में तुम कहां इन चक्करों में पड़ी हो. तुम्हारे घर वाले इन बातों को मानते हैं, तो क्या हुआ. तुम तो इन रूढ़ियों को तोड़ सकती हो न.

सिर के बाल भी शरीर के अन्य अंगों की तरह शरीर का एक भाग हैं. हम जिस तरह हाथपैर जैसे अंग कभी भी धो लेते हैं, ठीक उसी तरह सिर के बाल भी कभी भी धो सकते हैं. बिना मतलब अंधविश्वास से मन में किसी तरह का वहम न पालो. मेरा यकीन कर, अमावस्या को या ऐसे किसी भी दिन सिर के बाल धोने से कुछ भी अशुभ नहीं होगा. मैं खुद भी जब चाहे तब बाल धो लेती हूं. मेरे साथ कुछ भी अमंगल नहीं हुआ है. यह सुन सहेली का मन इन अंधविश्वासों से जरूर बाहर आएगा.

अब कुछ वैज्ञानिक तर्क

छींक आने पर 2 मिनट रुक कर बाहर जाते हैं : प्रियंका जल्दीजल्दी में अपने कदम बढ़ाते हुए क्लास की तरफ बढ़ रही थी. उस के साथ आ रही उस की दोस्त रेनू ने उसे टोका, आस्था, 5 मिनट रुक कर चलेंगे, तुम देख नहीं रही हो, मुझे अभी छींक आ गई है. इस पर आस्था ने नाराज हो कर कहा कि हम पहले ही लेट हैं प्रैक्टिकल के लिए. अगर और रुके तो एंट्री नहीं होगी. लेकिन रेनू ने कहा हमारे घर में दादादादी से ले कर मम्मीपापा तक और मुझे भी पूरा विश्वास है कि छींक आने पर यदि दो मिनट न रुक कर वैसे ही बाहर चले गए तो कोई न कोई अनहोनी जरूर होती है. रेनू ने उस की बात नहीं मानी लेकिन आस्था दौड़ते हुए गई और उस ने एंट्री कर ली. लेकिन थोड़े ही देर में जब रेनू पहुंची, तो रूम क्लोज हो चुका था और मैडम की लाख मिन्नतें करने पर भी रेनू को एंट्री नहीं मिली.

उस का प्रैक्टिकल छूटना मतलब मार्क्स कम होना. रेनू का मूड बहुत ख़राब हुआ तो समझाया कि आज तो तुम ने अपनी आंखों से देख लिया न कि तुम्हारे छींकने के बावजूद भी मेरा कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन तुम्हारा काफी नुकसान हो गया. अगर तुम न रुकतीं तो शायद नुकसान न होता. अब तुम ही सोचो, अगर यह अपशकुन होता, तो वह मुझे लगता लकिन लगा तुम्हें. इसलिए इस का अपशकुन से कुछ लेनादेना नहीं है.

क्या है छींक आने का वैज्ञानिक कारण : आस्था ने फिर रेनू को तसल्ली से समझाया कि मेरे पापा हमेशा कहते हैं, छींक वह क्रिया है जिस में फेफड़ों से हवा नाक और मुंह के रास्ते अत्यधिक तेजी से बाहर निकाली जाती है. जब हमारे नाक के अंदर की झिल्ली, किसी बाहरी पदार्थ के घुस जाने से खुजलाती है, तब नाक से तुरंत हमारे मस्तिष्क को संदेश पहुंचता है और वह शरीर की मांसपेशियों को आदेश देता है कि इस पदार्थ को बाहर निकालें. सर्दीजुकाम होने पर भी ऐसे ही छींक आती है क्योंकि ज़ुकाम की वजह से हमारी नाक के भीतर की झिल्ली में सूजन आ जाती है और उस से खुजलाहट होती है.

मतलब, छींक आना एक सामान्य मानवीय क्रिया है. अब आप सोचिए कि जब छींक द्वारा हमारा शरीर नाक और गले के उत्तेजक पदार्थों को बाहर निकाल रहा हैं तो उस में शकुनअपशकुन बीच में कहां से आ गया. छींक बेचारी को पता नहीं होता कि कोई शुभकार्य के लिए बाहर जा रहा हैं तो आना चाहिए कि नहीं आना चाहिए. रेनू की समझ में पूरी बात आ चुकी थी और अब वह समझ चुकी थी कि यह सिर्फ एक अंधविश्वास है, और कुछ नहीं.

जब शेषनाग करवट लेते हैं तब भूकंप आता है

रजत ने बताया कि हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि धरती शेषनाग पर टिकी हुई है और जब शेषनाग करवट बदलता हैं, तो वह हिलने लगती है और इसी से भूकंप आता है. जब भी भूकंप आता है तो मेरी दादी यही बोलती थी और इतना पढ़नेलिखने के बाद भी मैं इसी बात को सच मानता रहा हूं. इस सच से परदा उठाया मेरी एक टीचर ने जब उन्होंने इस का वैज्ञानिक तर्क दिया तो बात समझ आई.

भूकंप आने का वैज्ञानिक तर्क

पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है. इस के नीचे तरल पदार्थ लावा है. ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इन के टकराने से ऊर्जा निकलती है जिस से भूकंप आता है. इस के बाद मैं ने अपने घर पर भी यह बात सब को बताई और उन का तो मुझे नहीं पता लेकिन मेरा चीजों को देखने का नज़रिया बदल गया. अब मैं कोशिश करता हूं कि हर चीज को विज्ञान की कसौटी पर परख कर देखूं.

वाकई यह सच है कि विज्ञान तर्क के आधार पर किसी भी बात को जांचतापरखता हैं जबकि धर्म से जुड़ी किताबें सिर्फ़ बातों का पुलिंदा होती हैं, जिन में अंधविश्वास भरा होता है. इस तरह हर इंसान बचपन से देखीसुनी बातें और वैज्ञानिक सच में से किसे सच माने, इस दुविधा में फंसा रहता हैं और इस तरह बचपन से हुई अपनी परवरिश के कारण ही पढ़ालिखा इंसान भी अंधविश्वासी बन जाता है.

दोस्तो, हम हर विषय की दोदो परिभाषाएं रखते हैं, इसलिए दुविधाग्रस्त हो जाते हैं. कुछ लोगों का कहना होता है कि हमारे पूर्वज ऐसा मानते थे, इसलिए हम भी मानेंगे. हमारे पूर्वज कंदमूल खा कर जंगलों में नग्न रहते थे, तो क्या हम भी कंदमूल खा कर जंगलों में नग्न घूमेंगे? नहीं न. सो, सुनीसुनाई बातों के बजाय अपनी बुद्धि पर भरोसा करें. वैसे भी, जब जागो तभी सवेरा होता है.

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