26 साल का यंग आईटी प्रोफैशनल का ईयरली पैकेज 50 लाख, फिर भी वह सेस्टिसफाइड नहीं है. वह हर साल जौब बदलता है. उस की लाइफ में पर्सनल रिश्तों की कोई जगह नहीं है, वीकेंड पर पार्टी करना, औफिस क्लीग्स के साथ हैंग आउट, हर 2-3 महीने में महंगा फोन लेना, साल में 3-4 बार फौरेन ट्रिप्स, हर दूसरे साल गाड़ी बदलना फिर भी वह जिंदगी से बोर हो गया है, खुश नहीं है.
एनर्जेटिक, इम्पेशेंट, केयरलेस, टैक सैवी, स्मार्ट, रिबेलियस, एमलेस, कन्फ्यूज़्ड, एनर्जी ज्यादा पेशेंस कम, फिजिकल और मेंटल हैल्थ बड़ा कन्सर्न. ये सारे फीचर जेनजी के हैं. मिलेनियल्स वह जनरेशन है जिसे पता नहीं मैं क्या करूं, कैसे अपनी खुशी हासिल करूं?
आज के यूथ से अगर पूछा जाए कि उन के लाइफ के गोल्स क्या हैं? तो वे बोलेंगे कि उन के पास कोई लिस्ट औफ गोल्स नहीं है. सोचिए कितनी ऐमलेस है आज की जेनरेशन. यही वजह है कि वह हमेशा स्ट्रेस में रहती है. सारी सुविधाओं के बावजूद भी खुश नहीं है.
यूथ को यह समझना होगा कि टारगेट बनाने से ही सफलता हासिल की जा सकती है. जैसे अगर कोई रेलवे स्टेशन के काउंटर पर टिकट लेने के लिए पहुंचता है, काउंटर पर बैठा व्यक्ति उस से पूछता है, ”कहां की टिकट चाहिए” तो वह कहता है “कहीं की भी दे दो और टिकट न मिलने पर और वह कहीं भी नहीं पहुंच पाता.
जब किसी को किसी जगह जाने के बारे में उसे सारी जानकारी होती है कि कौन सी ट्रेन जाएगी, कितने बजे जाएगी, कोन सा सीट नंबर है तो सफर सुहाना और मंजिल पर पहुंचना आसान होता है लेकिन जब जिंदगी के गोल्स क्लियर नहीं होते तो कहीं भी पहुंचा नहीं जा सकता.
यही हाल युवाओं का है गैलरी में ढेरों फोटोज हैं लेकिन प्रोफाइल पिक के लिए कोई अच्छी नहीं लग रही. एक ही एंगल की दसियों फोटो हैं और कंफ्यूज हैं कि अच्छी कौन सी है. हर थोड़े दिन में लाइफ जीने का तरीका बदल रहे हैं, रिस्क लेने को तैयार नहीं हैं, इनफार्मेशन है, कम्फर्ट है फिर भी खुश नहीं. सोशल मीडिया में लाइक्स और कमेंट पर ही सारा ध्यान है. लक्ष्य जिंदगी में उदेश्य और दिशा देते हैं और बताते हैं कि क्या और कैसे हासिल करना है और किस दिशा में काम और मेहनत करनी है.
पेरैंट्स की सोच बदलना जरूरी
हमारी जेनजी जनरेशन के पेरैंट्स बचपन से वो सपने देखते हैं जो वे खुद पूरे नहीं कर पाए. बच्चों के लिए पूरी जिंदगी कुर्बान कर देते हैं इस एवज में कि बच्चे उन का नाम रोशन करेंगे. यह एक तरह का दबाव बनाता है. इस से बच्चों के दिमाग में हर समय प्रेशर हावी रहता है और बच्चे उसी दिशा में जुट जाते हैं.
दसवीं में अच्छे नंबर मिठाई तारीफें, बारहवीं में भी यही, इस के बाद प्रतियोगी परीक्षा में सफलता में या कैम्पस सेलेक्शन से और ज्यादा खुशी. अच्छी सैलरी, घर परिवार से दूरी, अकेलापन इन सब से युवाओं की मेंटल हैल्थ पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. पेरैंट्स को समझाना होगा कि वे अपनी अपेक्षाएं बच्चों पर न थोपें. जिस फील्ड में उन की रुचि और टैलेंट है वह फील्ड उसे चुनने दें, मतलब उस पर बड़ा आदमी बनने का अपना ख्वाब न थोपें. खुश कैसे रहना है उसे यह सिखाएं.
यूथ को दिशाहीन बनाने में सब से ज्यादा जिम्मेदार पेरैंट्स, मीडिया, सिनेमा और राजनीति है. देश में एक भी ऐसा नेता और संत नहीं जिस का आचरण यूथ को प्रेरित करता हो. हमारे समाज में जन्मपत्री देखने वाले, तांत्रिक, झोलाछाप डाक्टर, पूजापाठ कराने वाले पाखंडी समाज में बड़ी शान से कमाई कर रहे हैं और यूथ स्ट्रेस, अकेलेपन, गुस्सा, डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.
दुनिया में हुए अधिकतर सर्वे कहते हैं कि मिलेनियल्स सब से अनफिट जनरेशन है और फिज़िकल ही नहीं मेंटल हैल्थ भी इन के लिए एक बड़ा कन्सर्न है. इस से बुरा हाल जेनजी का है. यह दोनों जेनरेशन ही डिप्रेशन, कैफीन डिसऔर्डर, गेमिंग डिसऔर्डर से भी जूझ रही है.
क्यों कन्फ्यूज्ड है यूथ
• किसी भी बात में बहुत जल्दी निर्णय लेना
• किसी के बारे में बहुत जल्दी एक सोच बना लेना
• पेशेंस की कमी होना
• हर चीज में प्रैक्टिकल होना
• हर किसी को एक ही तराजू पर तौलना
• दूसरों की गलती से न सीखना
• बहुत जल्दी किसी पर यकीन कर लेना
• प्लान ए के फेल होने पर प्लान बी का न होना
• प्रेशर न झेल पाना
• सब कुछ अपने तरीके से करना किसी की न सुनना
यूथ हर किसी को देख के आकर्षित हो जाता है. उसे अपना रोल मौडल मान लेता है बिना अपनी क्षमता को पहचाने, उस के जैसा बनने की चाहत रखने लगता. अपने मार्ग से भटक जाता है और उसे अपना जीवन बेकार लगने लगता है. कैसे यूथ को एक ही दिन में प्यार हो जाता है और फिर कुछ हफ़्तों में वही रिश्ते खत्म हो जाते हैं? उबासी और बासीपन छा जाता है. जिस नौकरी को पाने के लिए मशक्कत करता है कुछ समय बाद उसी नौकरी से नफरत करता है और अपने सपनों अपनी खुशियों पर काम करने की बजाय स्ट्रेस में आ कर जंक फूड खाते, नशा करते हुए वेब सीरीज देखने में लग जाता है. कुछ बड़ा करना तो चाहता है, लेकिन इंस्टाग्राम, फेसबुक पर समय बरबाद करता है.
गैर जिम्मेदार सरकार
देश की करीब आधी आबादी 25 वर्ष से कम उम्र वाले युवाओं की है मगर महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या हमारे जनप्रतिनिधि, हमारी सरकार युवाओं के लिए कुछ करने के लिए गंभीर हैं? क्या सरकार युवा शक्ति का, उन की ऊर्जा का, उन के समय का सदुपयोग करने पर कोई काम कर रही है?
सिर्फ आईआईटी, आईआईएम व नैशनल यूनिवर्सिटीज खोल कर दे देने भर से युवा देश में सक्रिय भूमिका में आ जाएंगे ऐसा नहीं है. हर साल करीब एक से डेढ़ लाख छात्र एमबीए और इस के आधे इंजीनियरिंग कर के बेरोजगार घूम रहे हैं. देश में सिर्फ 20% ग्रेजुएट्स को ही रोजगार मिलता है. बाकी बचे 80% बेरोजगार राजनीतिक रैलियों में कुछ पैसों के लिए जिंदाबाद मुर्दाबाद करते हैं. लोकल राजनीति भी इसलिए कम जिम्मेदार नहीं है. चुनावी सीजन में हर नेता को इन फेसबुकिया यूथ की टीम चाहिए होती है जो उन के लिए जिंदाबाद के नारे लगाते रहें. किसी की तारीफ तो किसी को ट्रोल करे. इस सब से नेताजी का भविष्य तो सुरक्षित हो जाता है पर यूथ का भविष्य चौपट हो जाता है.
यूथ की जीवनशैली बरबाद करता सोशल मीडिया
एक सर्वे के हिसाब से इस साल के शुरूआत तक करीब 200 मिलियन यानि कि 20 करोड़ युवा फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हात्सऐप का इस्तेमाल करते हैं और इस का रिजल्ट साइबर क्राइम, ड्रग एडिक्शन, आभासी रिश्ते बनाने के रूप में सामने आ रहा है. युवाओं की जिंदगी मशीनी होती जा रही है. समाज में फैले अपराध खासकर साइबर अपराध, हिंसा, साजिश, धोखे में युवा जानेअनजाने संलिप्त हो रहे हैं. बिना मेहनत के मिली सुविधाओं और आधुनिकता के कारण उन्होंने जिंदगी को मजाक समझ लिया है.
रिस्क लेना सीखे यूथ
अगर कुछ बड़ा करना है तो रिस्क और जोखिम लेने ही होते हैं. हमारे परिवारों में अगर बच्चा रूटीन से अलग कैरियर चुनने की बात घर वालों को कहता है तो वे उसे डराते हैं उस का साथ नहीं देते क्योंकि उन्होंने खुद कभी रिस्क नहीं उठाया होता. अगर कुछ नया करना है और बड़ा करना है रिस्क लेना ही एकमात्र तरीका है. यूथ को यह समझना होगा कि बिना रिस्क के कुछ नहीं मिलता और पेरैंट्स को इस में उन का साथ देना होगा.