दुनिया में 3 जगहें मुख्य मानी जा सकती हैं जहां धर्म का बोलबाला है. इन देशों के नागरिकों को धर्मजनित संतोष, सुख, अन्याय, युद्ध, भूख, गरीबी, नरसंहार ?ोलना पड़ रहा है. ये जगहें या देश हैं- अफगानिस्तान, इजराइल और भारत. इन तीनों देशों में धर्म सत्ता पर चढ़ कर बैठ गया है और एक धर्म के कुछ लोग इस का लाभ उठा रहे हैं तो कई धर्मों वाले निशाने पर हैं.

धर्मों से औरतों के अधिकार कम हो हो रहे हैं. भारत में यूनिफौर्म सिविल कोड के नाम पर युवतियों पर तरहतरह के बंधन थोपे जा रहे हैं ताकि हर काम धर्मसम्मत विधियों से हो जिस से धर्म के ठेकेदारों को मोटी दक्षिणा मिले. औरतों के अधिकार पौराणिक युग में कितने थे, यह पार्वती के पिता दक्ष द्वारा यज्ञ के आयोजन में पुत्री के पति शिव को न बुलाने का प्रसंग से साबित है. यह सैकड़ों प्रसंगों में से एक है. पार्वती को कोई उपाय नहीं सू?ा कि वह पिता को राजी कर सके, इसलिए उस ने योगाग्नि से अपने को भस्म कर लिया.

युवतियों को आज भी शिक्षा यही दी जा रही है कि जो काम करो, अपने पिता, पति या भाई के हुक्म से करो जैसे इस कथा में था वरना जलने की नौबत आ जाएगी. ईरान में कितनी ही लड़कियों को सिर्फ स्कार्फ के नीचे बाल दिखने पर मार डाला गया है. अफगानिस्तान में तालिबानियों के खौफनाक कृत्य अब तो खबरों में भी नहीं आ रहे क्योंकि वहां कोई विदेशी संवाददाता ही नहीं है.

अगर राममंदिर के बाद दूसरे मंदिरों को मसजिदों की जगह बनाने की बात उठाई जा रही है तो असल में उद्धारक धर्म को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे सदियों से हुआ. हिटलर ने धर्म की खातिर उन यहूदियों को भून डाला जिन की संतानें आज फिलिस्तीन में अरब मुसलिमों को टैंकों से रौंद रही हैं. धर्म उस के पीछे मुख्य कारण है.

अफगानिस्तान में सत्ताधारी धार्मिक लड़ाके यानी तालिबान अपने धर्म इसलाम के ही लोगों पर वहशियाना अत्याचार कर रहे हैं. गरीबी और बीमारी से तो जनता त्रस्त है ही, नागरिक स्वतंत्रताएं भी नष्ट हो गई हैं. औरतों को धर्म के नाम पर घरों की चारदीवारियों में कैद किया जा चुका है. तालिबानियों ने इसलाम का मुखौटा ओढ़ कर अपना ‘तथाकथित इसलाम’ पूरे अफगानिस्तान में थोप दिया है. यह बड़ी बात है कि प्रमुख तालिबानियों के नेताओं ने अपने बच्चों को यूरोप, अमेरिका में भेज दिया है और उन्हें नियमित पैसे भी भेज रहे हैं.

सदियों दूसरों के निशाने पर रहे जूडाइज्म धर्म को मानने वाले यहूदियों ने अब अपना पुश्तैनी गुस्सा इजराइल में फिलिस्तीनी अरब मुसलिमों पर उतारना शुरू किया है और 1948 से इजराइल और उस के आसपास का इलाका लगातार गोलियां व बमों को सह रहा है. हालांकि इजराइल सुखीसंपन्न है पर यह भरोसा नहीं कि कब कहां से छापामार फिलीस्तीनी हमला कर दें. फिलिस्तीनी तो हमेशा ही बंदूक के बैरल का सामना करते रहते हैं और उन के यहां स्वाभाविक मौतें कम होती हों, गोलियों से ज्यादा मरते हों तो बड़ी बात नहीं.

भारत अब इन की गिनती में आ गया है. राम मंदिर के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को 2014 में वोट क्या मिले, उस ने अपना पूरा जोर उसी शिगूफे पर लगा दिया और देश की राजसत्ता सिर्फ मंदिरमयी हो गई है. दिनभर में कोई घंटा ऐसा नहीं बीतता जब प्रधानमंत्री, कोई मुख्यमंत्री या कोई केंद्रीय मंत्री हिंदू धर्म का प्रचार करता नजर न आए. न्यूज चैनलों का काम यही रह गया है कि वे इन मंत्रियों के शब्दों को बढ़ाचढ़ा कर भोंपू की तरह फैलाएं और न केवल विधर्मियों के दिलों में दहशत पैदा करें बल्कि अपने धर्म के तार्किक व सम?ादार लोगों को भी डराएं.

अरबों नहीं, खरबों रुपए आज भारत में धर्म के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं क्योंकि शासनतंत्र उन हाथों में है जिन की पीढि़यों ने सदियों से कमा कर नहीं खाया. उन्होंने तो धर्म के नाम पर पैसा और शासन दक्षिणा में पाया है और वे इस अचूक आजमाए फार्मूले को अब न्योछावर नहीं करना चाहते.

धर्म का नाम ले कर वोट दुनिया के हर कोने में हथियाए जाते हैं क्योंकि धर्म के केंद्र हर गांव, कसबे में हैं और हर जगह एकदो नहीं, बीसियों तरह के धर्म मौजूद हैं. ज्यादातर धर्म अब इस बात पर सहमत हो गए हैं कि आपस में लड़ने की जगह, मिलबांट कर लूटना अच्छा है. यही नहीं, अगर धर्मों को आगे रख कर तनाव पैदा होता भी है तो उस से भी सभी धर्मों के दक्षिणापात्रों में पैसा बढ़ता है, प्रचारक मुफ्त में मिलते हैं और धर्मगुरुओं को सेविकाएं धन देने के साथ अपने तन को परोसती भी हैं.

धर्म का इस्तेमाल दूसरे धर्मों के खिलाफ करना अब कम होने लगा है. क्रूसेड जैसे युद्ध जो 11वीं शताब्दी में येरुशलम, जहां जीसस क्राइस्ट पैदा हुए, में हुए, मुसलिम शासकों से उसे छुड़ाने के लिए किए गए थे जिन में दोनों तरफ के लाखों मरे थे. उन युद्धों में आंशिक सफलता मिली. येरुशलम पर ईसाई शासकों का असल कब्जा आधुनिक तकनीकों के आने के बाद 17वीं सदी में हो पाया था. पर सभी धर्मों के राजा स्वधर्मियों से लड़ते रहे और अपने नागरिकों को मरवाते रहे. ईसाई हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में करोड़ों सैनिक मरवा डाले थे जिन में से अधिकांश ईसाई थे और कुछ जरमनी के साथ लड़े रहे थे, कुछ अमेरिका, इंगलैंड, फ्रांस आदि के साथ.

तार्किक, लोकतांत्रिक, वैज्ञानिक क्रांति ने जो लाभ दुनिया को पहुंचाया था वह अब बिखरने लगा है. वैज्ञानिक अब मजदूर बन कर रह गए हैं. पुराने जमाने के आर्किटैक्टों और शिल्पकारों की तरह पिरामिडों, चर्चों, मंदिरों, मसजिदों को बनाने वालों का नाम कहीं नहीं है, बनवाने वाले राजाओं या धर्म के नाम हैं.

18वीं व 19वीं सदियों में वैज्ञानिकों के नाम हुआ करते थे, जो आज गायब हो गए हैं. धर्म ने कभी पैरवी नहीं की कि औरतों को सुरक्षा दी जाए, ?ाठ, हिंसा, लूट न हो. धर्म ने सड़कें, पुल, सराएं, नहरें, शहर नहीं बनवाए. धर्म सिर्फ पूजा की जगह बनवाता है और उस का केंद्र कोई देवी, देवता, दीवार, प्रतीक नहीं होता. वहां बड़ा सा डब्बा होता है जिस में पैसे डाले जाते हैं. सभी धर्मों के मुखिया राजाओं की तरह रहते हैं बड़े आलीशान महलों में जबकि जनता ठंड, गरमी, बरसात, धूप में अधकच्चे मकानों में. ईश्वर कृपा करेगा, भगवान भला करेगा, गौड विल टेक केयर आदि महावाक्य जनता को रातदिन सु?ाए गए लेकिन दुनिया ने धर्म के नाम पर अनाचार और अत्याचार ही ?ोला. पिछली 3-4 सदियों में वैज्ञानिक, वैचारिक व तार्किक क्रांतियां हुईं जिन के नतीजे में बहुत सी सुविधाएं तकनीक के कारण मिलीं, धर्म के सहारे नहीं. पर अब सूई वापस लौटने लगी है. धर्म का इस्तेमाल उन कामों के लिए किया जा रहा है जिन्हें अधर्म कहा जाता है. हालांकि, सच यह है कि हर धर्म में ऐसी किताबें हैं जिन में उसी धर्म के प्रतिष्ठित देवीदेवता, प्रवक्ता ने ऐसे काम किए जिन में छल, कपट, हिंसा, भेदभाव, ?ाठ शामिल हैं. वह अधर्म आज भी दिख रहा है, धर्म का नाम ले कर सत्ता के घोड़ों पर सवार शासकों में भी और आम जनता में भी. ईरान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, पाकिस्तान, सऊदी अरब, भारत ही नहीं, अमेरिका, यूरोप तक ऐसे मामले रोज सामने आ रहे हैं. उन्हें दबाया जाता है पर वे धर्म की पोल उसी तरह खोलते रहते हैं जैसे धर्म अपना खोल सारी जनता के दिमाग पर फैलाता रहता है.

भारत आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब जैसा बन चुका है जहां सरकारें धर्म की रक्षा के लिए हैं, जनता के हित के लिए नहीं. इस के लिए पैसा वे गरीब दे रहे हैं जो मेहनत कर रहे हैं, देश से बाहर जा कर कमा रहे हैं. इन 4-5 देशों में फर्क यह है कि सऊदी अरब और ईरान जमीन से निकलने वाले तेल के कारण अकड़ते हैं, इजराइल अपने लोगों की प्रतिभा के कारण पनपता रहा है पर अफगानिस्तान और पाकिस्तान बढ़ती जनसंख्या के कारण भूखे मर रहे हैं.

भारत अपने मजदूरों को लूट कर बड़ी ताकत बन चुका है पर इस के आम लोग फटेहाल हैं. ये 4-5 देश धर्म के शिकार हैं, धर्म इन्हें लूटता है, बल नहीं देता. इन देशों में जनता धर्म की शिकार है, शासकों का छोटा या बड़ा गुट मौज कर रहा है बिना किसी जवाबदेही के. जवाब तो मरने के बाद भावनाओं को देना है न, जो हर धर्म की अलग हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...