शाम 6 बजते ही जहां सब को घर निकलने की जल्दी होती थी, वहीं संतोष पूरी तसल्ली से अपने कंप्यूटर में सिर घुसाए बैठे रहते थे. काम भी ऐसा ज्यादा नहीं था कि औफिस टाइम में खत्म न हो, उन की पत्नी का कहना है कि वे कभी 9 बजे से पहले घर पहुंचते ही नहीं हैं.संतोष का घर जाने का जैसे मन ही नहीं करता, वे 9 बजे तक वहां क्या करते हैं, वही जानें.

संतोष का कहना है, ‘‘घर पहुंचते ही निशा दिमाग खाने लगती है. हमेशा हमारा किसी न किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. इस से तो अच्छा है कि देर से जाओ और खाना खा कर चुपचाप सो जाओ, फिर सुबह निकल लो.’’

बीते 3 दशकों में भारतीय परिवारों में घरेलू हिंसा, दहेज और तलाक के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. आम धारणा यह है कि पारिवारिक कलह और बिखराव का मुख्य कारण औरतें हैं, जो अपने अहं के कारण अपने पति व परिवार के दूसरे लोगों को महत्त्व नहीं देती हैं.

ऐसे बहुतेरे लोग हैं जिन का वैवाहिक जीवन गड़बड़ाया रहता है, पर वे उसे संभालने की कोशिश नहीं करते. शायद वे उसे नियति मान लेते हैं या फिर महिलाओं की अपेक्षाओं पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझते. वे गृहस्थी को ढोल की तरह गले में लटकाए चलते हैं. समाज में गृहस्थी को बोझ बताने वाले लोगों की कमी नहीं है, लेकिन इसे ऐसा मसला नहीं माना जाता जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए.

डाक्टर कहते हैं कि वैवाहिक जीवन की अशांति हमारे मन पर ही नहीं, तन पर भी गहरा असर डालती है. इस के चलते महिलाएं गंभीर रोगों, जैसे डायबिटीज, ब्लडप्रैशर, हार्ट की समस्याएं, व्यग्रता, मानसिक असंतुलन, भूलने की बीमारी, तनाव आदि की शिकार हो जाती हैं, तो पुरुष भी तनाव, हाई ब्लडप्रैशर, हार्ट व मैंटल डिजीज के शिकार बनते हैं.

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