विश्वभर में नारी के अधिकारों व उन के विकास की चर्चा है. उन के सम्मान में विश्व में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है. नारी सम्मान की चर्चा के बीच हैरानी यह है कि कई देशों में नारी खतना जैसी क्रूर प्रथा जारी है. यह प्रथा नारी विकास को अंगूठा दिखाती साबित हो रही है. यह प्रथा आज भी इंडोनेशिया व कई अफ्रीकी देशों के पिछड़े इलाकों और कबीलाई क्षेत्रों में चलन में है.

संकीर्ण मानसिकता

इस में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि यह प्रथा नारी को शारीरिक व मानसिक क्षति पहुंचाती है. इस की असहनीय पीड़ा नारी को जीवनपर्यंत झेलनी पड़ती है. पति के प्रति वफादार बने रहने की पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता ने इस प्रथा को जन्म दिया है.

इस प्रथा के समर्थकों का इस विषय पर कहना है कि उन के जीवन में उन की अपनी संस्कृति का बहुत महत्त्व है. अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो पश्चिमी संस्कृति के गुलाम बन जाएंगे. भले ही इस कारण लाखों नारियों को असहनीय पीड़ा झेलनी पड़े. धिक्कार है ऐसी पुरुषवादी सोच पर जो हर समस्या की जड़ नारी को ही मानती है.

क्या है नारी खतना

नारी खतना को अंगरेजी में फीमेल जैनिटल म्यूटिलेशन यानी एफजीएम कहते हैं. इस के अंर्तगत नारी के जननांगों के क्लिटोरिस (जिसे भगनासा भी कहते हैं) का तकरीबन सारा भाग काट दिया जाता है, केवल मूत्रत्याग और मासिकधर्म के लिए छोटा सा द्वार छोड़ दिया जाता है.

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इसलाम में खतना प्रथा

खतना एक स्वीकार्य प्रथा है जो केवल पुरुष खतना के नाम से जानी जाती है. इसे इसलाम में सही भी कहा जाता है. यह एक प्रकार की शल्यक्रिया होती है, जिसे अच्छे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से किया जाता है. यइ इसलाम से पहले भी अफ्रीका में होती रही है. सर्वप्रथम इस प्रथा का विवरण हमें रोमन साम्राज्य और मिस्र की प्राचीन सभ्यता में देखने को मिलता है.

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