जिंदगी कब कौन सा मोड़ लेगी, कोई नहीं जानता. ऐसे तमाम लोग हैं, जो चलतेचलते कुछ इस तरह लड़खड़ा कर गिरते हैं या गिरा दिए जाते हैं कि उन्हें जीवनपथ पर सहज गति से चलने की राह सुझाई नहीं देती. ऐसे ही लोगों में हैं रूपा. जब वह 15 साल की थीं, तभी सौतेली मां ने सोते में उन के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया था. रूपा ने पूरी रात तड़पते हुए बिताई. अगली सुबह रूपा के चाचा उन्हें अस्पताल ले गए. वह बच तो गई लेकिन चेहरा कुरूप हो गया.
एक बार तो रूपा को लगा कि जिंदगी खत्म हो गई, बिलकुल टूट गई थी वह. अगले 5 साल तक रूपा ने खुद को कमरे में बंद रखा. किसी से बात तक नहीं करती थी वह. अस्पताल जाना मजबूरी थी, सो मुंह ढंक कर अस्पताल जाती.
हादसे से पहले रूपा फैशन की दुनिया में जाना चाहती थी, लेकिन उस का हर सपना धरा रह गया. यह सच है कि वक्त बड़ेबड़े घाव भर देता है. रूपा के साथ भी यही हुआ. रूपा ने फेसबुक के जरिए एसिड सरवाइवर्स रितु और नीतू के साथ जुड़ कर कुछ करने की ठानी. इस के लिए उन्होंने एनजीओ ‘छांव फाउंडेशन’ से संपर्क किया. छांव फाउंडेशन की टीम ने एक मुहिम के तहत जब एसिड सरवाइवर्स की मदद के लिए एक दुकान खुलवाने की सोची तो उन के साथ 8 एसिड सरवाइवर्स और जुड़ गईं.
इस के बाद फाउंडेशन को अपनी सोच बदलनी पड़ी. काफी सोचविचार के बाद छांव फाउंडेशन ने एसिड सरवाइवर्स के लिए 10 दिसंबर, 2014 को आगरा में एक कैफे शुरू किया, जिस का नाम रखा गया ‘शीरोज हैंगआउट’. इस का मतलब है महिला हीरोज का अड्डा. आगरा के शीरोज हैंगआउट का असिस्टेंट मैनेजर बनाया गया रूपा को.