मुजफ्फरपुर, देवरिया, उन्नाव, कठुआ, इंदौर जैसे शहरों में घटी घटनाएं देख लीजिए, हर जगह सुव्यवस्थित, सांगठनिक तरीके से यौनशोषण भी हो रहा है और आर्थिक शोषण भी. यह तरीका पहले भी था. उस पर राजनीतिक संरक्षण का जामा पहना दिया गया है, अब भी कमोबेश वही तरीका है. हर घटना में राजनीतिक दल, अफसर, धार्मिक नेता और परिवार भी शामिल रहा है.
देवरिया में पुलिस की कार्यवाही से पता चलता है कि विंध्यवासिनी शेल्टर होम के रजिस्टर में दर्ज 42 युवतियों में से 18 अभी गायब हैं. बाकी युवतियों की डाक्टरी जांच में यौनशोषण की पुष्टि हुई है. उन के बयानों में कहा गया है कि हर रात 4-5 युवतियों को बाहर भेजा जाता था. शेल्टर होम में रात में बड़ेबड़े अफसर आते थे. ये शेल्टर होम इस तरह का धंधा करने की हिम्मत कर लेते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि औरतों पर अत्याचारों को सामाजिक मान्यता है.
यही क्यों, धर्म के नाम पर बने आश्रमों में भी यही सब चलता रहा है. वीर?ेंद्र देव दीक्षित से ले कर राम रहीम, आसाराम, रामपाल, इच्छाधारी बाबा और अब दाती महाराज तक की यौन उत्पीड़न मामलों में लिप्तता सामने आ चुकी है. वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रमों में तो मांबाप खुद अपनी लड़कियों को छोड़ कर गए थे. औरतें खुद को पाप की गठरी ही मानती हैं और ईश्वरभक्ति को मुक्ति का रास्ता.
मुजफ्फरपुर और देवरिया में यौनशोषण मामलों में सत्ता और एनजीओ का गठजोड़ सामने आने से यह साफ है कि स्त्री का यौनशोषण कोई व्यक्ति अकेला नहीं, शासन, प्रशासन, समाजसेवी, परिवारजन और धर्मगुरु मिल कर करते हैं. यह सांगठनिक यौनशोषण है. यह इसलिए है क्योंकि इसे धर्म की मान्यता प्राप्त है. इसीलिए तो जब बलात्कार की वारदात सामने आती है तो सरकार और धर्मगुरु मौन रहते हैं और नेता या दूसरे लोग जो कुछ बोलते हैं तो वे वही धर्मसम्मत बातें कहते हैं जो स्त्री के लिए धार्मिक किताबों में लिखी हैं यानी धर्म स्त्रियों के यौनशोषण को संरक्षण देता आया है. इस यौनशोषण का एक दुष्परिणाम यह भी है कि महिलाओं से आर्थिक प्रगति में जो योगदान लिया जा सकता है, वह नहीं लिया जा पाता.