हाल ही में 27 दिसंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी से प्रसारित अपने प्रसिद्ध कार्यक्रम ‘मन की बात’ में भी विकलांगजनों का उल्लेख किया और बताया कि इन लोगों को विकलांग के बजाय ‘दिव्यांग’ के नाम से जाना जाए, क्योंकि इन के अंदर ऐसी प्रतिभा होती है जो आम आदमी में नहीं होती. इन की इस अद्भुत प्रतिभा की वजह से इन्हें दिव्यांग कहा जाए. प्रधानमंत्री की बात का गूढ़ अर्थ जान कर इन लोगों को अत्यंत प्रसन्नता हुई और वे दिव्यांग शब्द के कायल हो गए. दिव्यांगता कोई अभिशाप नहीं बल्कि शारीरिक अंगों में कमी के कारण होती है. कुछ कमियों का प्रभाव समझ में नहीं आता जबकि कुछ कमियां हमारे जीवन को प्रभावित कर देती हैं. एक अंग बेकार होने से व्यक्ति निशक्त नहीं हो जाता.

क्या है दिव्यांगता

निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 के मुताबिक जब शारीरिक कमी का प्रतिशत 40 से अधिक होता है तो वह दिव्यांगता की श्रेणी में आता है.

दिव्यांगता ऐसा विषय है जिस के बारे में समाज और व्यक्ति कभी गंभीरता से नहीं सोचते. क्या आप ने कभी सोचा है कि कोई छात्र या छात्रा अपने पिता के कंधे पर बैठ कर, भाई के साथ साइकिल पर बैठ कर या मां की पीठ पर लद कर या फिर ज्यादा स्वाभिमानी हुआ तो खुद ट्राईसाइकिल चला कर ज्ञान लेने स्कूल जाता है, किंतु सीढि़यों पर ही रुक जाता है, क्योंकि वहां रैंप नहीं है और ऐसे में वह अपनी व्हीलचेयर को सीढि़यों पर कैसे चढ़ाए? उस के मन में एक कसक उठती है, ‘क्या उस के लिए ज्ञान के दरवाजे बंद हैं? क्या शिक्षण संस्था में उस को कोई सुविधा नहीं मिल सकती?’ शौचालय तो दूर उस के लिए एक रैंप वाला शिक्षण कक्ष भी नहीं है जहां वह स्वाभिमान के साथ अपनी व्हीलचेयर चला कर ले जा सके एवं ज्ञान प्राप्त कर सके.

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