52 साला लोकेश कुमार तोमर एक हुनरमंद माला कारीगर हैं. उन की बेटी नेहा ने हाल ही में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की है. लोकेश कुमार तोमर मेरठ, उत्तर प्रदेश से 24 किलोमीटर दूर मुडाली गांव में रहते हैं. उन की बेटी नेहा मोतियों की बहुत उम्दा कारीगर है. 12 साल की उम्र से ही नेहा मोती के कंगन व माला बनाने में अपने पिता की मदद करने लगी थी. आज वह रोज 3 सौ से 4 सौ रुपए तक कमा लेती है. लोकेश कुमार ऐसे अकेले शख्स नहीं हैं, जिन का पूरा परिवार इस कारोबार से जुड़ा है, बल्कि इस इलाके के 25 हजार लोगों में से 80 फीसदी आबादी मोतियों के काम में लगी हुई है. अब इस गांव को ‘मोती गांव’ के नाम से जाना जाने लगा है.
इसी इलाके की एक दबंग औरत निर्मल बालियान का कहना है, ‘‘इस इलाके की ज्यादातर औरतें व लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं. ये औरतें खाली समय में काम कर के अपने परिवार की माली मदद करती हैं, जो पूरे दिन खेतों में मेहनतमशक्कत करते हैं.
‘‘गांवभर का चलन है कि लड़कियों को कम उम्र में ही काम करने के लिए बढ़ावा दिया जाता है, जो खुशीखुशी अपने परिवार की मदद करने लगती हैं.’’
20 सालों से माला बनाने में लगी बिमला का कहना है, ‘‘काम में मसरूफ रहने से नौजवान पीढ़ी गलत बातों की ओर सोचती तक नहीं.’’
मुडाली गांव के काफी असरदार शख्स रोहिल अहमद का कारोबार काफी बड़ा है. वे पूरे देश में अपना माल भेजते हैं. उन का कहना है, ‘‘बहुत सी औरतें इस काम में जल्दी ही माहिर हो जाती हैं. उन्हें मोतियों को नायलोन के धागे में पिरोने में कोई खास दिक्कत नहीं होती.’’