उत्तर प्रदेश में कानपुर देहात जिले के पुखरायां रेलवे स्टेशन के पास शनिवार-रविवार की भोर में जबकि ट्रेन यात्री नींद में थे, इंदौर से पटना सीधे जानेवाली इकलौती साप्ताहिक एक्सप्रेस गाड़ी इंदौर-पटना राजेंद्र नगर के भीषण हादसे का शिकार होने की जो रविवार की सुबह खबर आई, उसने अवकाश वाले दिन पर गोया दुख और शोक-संताप की एक चादर ही डाल दी. कहने की जरूरत नहीं कि साप्ताहिक एक्सप्रेस गाड़ी होने की वजह से जब यह इंदौर से चली थी, तब गाड़ी का हर डिब्बा मुसाफिरों से खचाखच भरा हुआ था. यहां तक कि यात्रियों की संख्या ज्यादा होने के चलते वातानुकूलित श्रेणी का इसमें एक अतिरिक्त डिब्बा लगाना पड़ा था. इसलिए भी इस भीषण दुर्घटना में मरने और घायल होने वालों की तादाद इतनी ज्यादा है.

गौरतलब है कि इंदौर से सीधे पटना जानेवाली राजेंद्र नगर एक्सप्रेस इकलौती रेलगाड़ी है, जो हर शनिवार को इंदौर से चलकर रविवार शाम पटना पहुंचती है. यही कारण है कि यूपी के पूर्वांचल और बिहार के विभिन्न जिलों के लोग इस ट्रेन से यात्रा करने को प्राथमिकता देते हैं. इंदौर और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों में यूपी के पूर्वांचल और बिहार के लोग बड़ी तादाद में चूंकि नौकरी करते हैं, सो वही आम तौर पर इस ट्रेन से सफर भी करते हैं.

हर मौसम में ही यात्रियों की काफी भीड़भाड़ वाली इस ट्रेन के 14 डिब्बे एक-दूसरे को जोरदार टक्कर देते हुए पटरी से उतरे, नतीजा यह हुआ कि शाम तक मरनेवालों की तादाद 115 से ज्यादा सामने आई, जबकि दो सौ से ज्यादा मुसाफिर घायल अवस्था में विभिन्न अस्पतालों में इलाज के लिए ले जाए गए, जिनमें आधे से ज्यादा की हालत गंभीर बताई गई है.

यों तो ट्रेन हादसे की खबर मिलते ही यात्रियों की खोज और बचाव से लेकर घायलों के उपचार तक में सेना, एनडीआरएफ और उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से रेलवे कर्मचारी अभियान में जुट गए. रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा और मंत्री सुरेश प्रभु ने भी दुर्घटना स्थल और हालात का जायजा लेने में कोई देर नहीं की. दुर्घटना के कारणों की जांच भी होगी ही. लेकिन यक्ष प्रश्न यही है कि रेल हादसे रुकने या कम होने का नाम क्यों नहीं ले रहे. कड़वी सच्चाई यही है कि सुरक्षित सफर के लिहाज से इतना विशाल तंत्र होने के बावजूद रेलवे लगातार निराश ही करता आ रहा है. कोई साल ऐसा नहीं, जबकि देश में कम से कम आधा दर्जन रेल दुर्घटनाएं न हुई हों. रेलवे का सुरक्षा तंत्र गोया किसी असाध्य बीमारी का शिकार हो.

रेल दुर्घटनाओं की सालाना कुंडली उठाकर देखें तो वह काफी लंबी है. बहुत पीछे और बहुत दूर न भी जाएं तो इसी साल कुछ महीने पहले ही यूपी के भदोही में एक भीषण हादसे में दस स्कूली बच्चों की दर्दनाक मौत हुई, जबकि 12 बच्चे घायल हो गए. हादसा मानव रहित क्रॉसिंग पर स्कूली वैन के ट्रेन से टकराने से हुआ. इस घटना ने करीब डेढ़ साल पहले यूपी के ही मऊ जिले में मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पर घटी दर्दनाक घटना का दर्द ताजा कर दिया था. उस घटना ने भी दर्जन भर से ज्यादा बच्चों की जिंदगी लील ली थी. इसी तरह तेलंगाना के मसाईपेट में भी पिछले वर्ष जुलाई में एक हादसे में भी 19 बच्चों की मौत हो गई थी. बहरहाल, दुर्घटनाओं के प्रकार अलग हो सकते हैं, लेकिन सवाल यही है कि इस अभिशाप से रेलवे को मुक्ति कब मिलेगी?

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