Sushila Meena कोई अपवाद नहीं. न ही कोई स्पैशल टैलेंट है. सुशीला को ले कर इंटरनेट पर जो होहल्ला है वो सिर्फ उस के गरीब होने का है. जो गर्व किया जा रहा है उस की गरीबी पर किया जा रहा है. यह गर्व की बात नहीं हमारे लिए शर्म की बात है कि इस पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं.
कुछ दिनों पहले तक 10 साल की सुशीला मीणा एक आम लड़की थी, उस के दिन आर्डिनरी थे. सुबह उठना, अपनी मां के साथ घर के कुछएक काम निपटाना और खपरेल से टूटेफूटे स्कूल जाना. ठीक वैसे ही जैसे उस जैसी तमाम स्कूली लड़कियों के थे.
लेकिन लाइफ 180 डिग्री तब फ्लिप हुई जब लैजेंड्री क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने अपने एक्स पर सुशीला मीणा की एक रील शेयर करते हुए उस की तारीफ़ की, जिस में वह अपने स्कूल में बने छोटे से प्लेग्राउंड में बिना जूते/चप्पलों के बौलिंग कर रही थी. सुशीला का बौलिंग एक्शन भारतीय बौलर रहे जहीर खान से मिलताजुलता है तो सचिन ने जहीर को भी टैग किया.
यह मामला सिर्फ एक ट्वीट से सुर्खियां बटोर गया. बात ट्वीट से अधिक सुशीला की वे परिस्थितियां थीं जिस से मौजूदा समय में देश की हर दूसरी लड़की या लड़का गुजर रहा है.
दरअसल सुशीला आदिवासी परिवार से है जो राजस्थान के प्रतापगढ़ में एक छोटे से गांव में रहती है. पिता मजदूर हैं और मां घर का काम संभालती हैं. घर में आर्थिक तंगहाली है. जिस घर में सुशीला रहती है वो डंडों से बना झोपड़ा है. न फ्रिज है न टीवी, न एसी है न पंखा. हाड़ कंपा देने वाली ठंड में बदलने को कपड़े नहीं और पहनने को चप्पल नहीं. यहां तक कि जिस उज्ज्वला योजना की वाहवाही देश के प्रधानमंत्री लूटा करते हैं सुशीला के घर में उस का दिया एक चूल्हा तक नहीं.
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