Atul Subhash Suicide : अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला ज्युडिशियल सिस्टम पर सवाल उठाती है. विडंबना यह है कि पूरी बहस महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानूनों को टारगेट करने पर केंद्रित हो गई हैं और इस घटना के चलते सभी महिलाओं को आरोपित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
Atul Subhash Case
34 साल के एआई सौफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. वैसे, मौत दुनिया का सब से बड़ा दुख है और जब कोई इंसान खुद ही मौत को लगे लगा ले, तो जाहिर है कि वह कितनी दुख और तकलीफ से गुजरा होगा, तब जा कर उस ने इतना बड़ा कदम उठाया होगा.
सुसाइड से पहले अतुल सुभाष ने करीब डेढ़ घंटे के वीडियो के साथ 24 पेज का सुसाइड नोट भी लिखा, जिस में उस ने पत्नी, उस के परिवार वालों और एक न्यायाधीश पर झूठे मामलों में फंसाने, पैसे ऐंठने, आत्महत्या, उत्पीड़न, जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के लिए उकसाने का आरोप लगाया. वीडियो बनाते वक़्त अतुल ने जो टीशर्ट पहना था, उस पर लिखा था, ‘जस्टिस इज ड्यू’ यानी इंसाफ बाकी है.
अतुल ने वीडियो में ज्यूडिशियल सिस्टम पर भी सवाल उठाए और कहा कि मुझे मर जाना चाहिए, क्योंकि मेरे कमाए पैसों से मेरे दुश्मन और मजबूत हो रहे हैं. उसी पैसे का इस्तेमाल मुझे बरबाद करने के लिए किया जाएगा. मेरे टैक्स से मिलने वाले पैसे से ये कोर्ट, पुलिस और पूरा सिस्टम मुझे और मेरे परिवार वालों को और मेरे जैसे और भी कई लोगों को परेशान करेगा. और जब मैं ही नहीं रहूंगा तो न तो पैसा होगा न ही मेरे मातापिता और भाई को परेशान करने की कोई वजह होगी. इसलिए वैल्यू की सप्लाई खत्म होनी चाहिए.
अतुल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि अगर उसे न्याय नहीं मिला तो उस की अस्थियों को कोर्ट के सामने नाले में डाल देना. मतलब साफ है कि उन का गुस्सा अपनी पत्नी और ससुराल वालों से ज्यादा देश के सिस्टम पर है और उन की मौत को गले लगाने का कारण भी इस व्यवस्था से न्याय खत्म होना ही है.
अतुल के दोषी को सजा तो मिलनी ही चाहिए, भले चाहे वो जो कोई भी हो. लेकिन उन की खुदखुशी को ले कर जिस तरह से दुनिया की सारी औरतों को दोषी ठहराया जा रहा है, वो सही नहीं है. अतुल की मौत के बहाने कुछ लोग महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों को रिव्यू करने की बात करने लगे हैं. बिना इस बात को समझे उन की मौत का जिम्मेदार कौन है, सारा दोष महिलाओं की सुरक्षा वाले कानून पर थौपा जा रहा है, जबकि इन कानूनों के बावजूद देश में हर घंटे आज भी महिला उत्पीड़न के 51 मामले दर्ज होते हैं.
माना कि अतुल सुभाष का दर्द समंदर जितना गहरा था. लेकिन उन के दुख का कारण सारी औरतों को मान लिया जाना, कहां का न्याय है ? यहां महिलाओं के खिलाफ पुरुषवादी मानसिकता वाली सोच दिखाई दे रही है. पूरा सोशल मीडिया इस मुद्दे पर औरतों को गुहनागार साबित करने पर तुला हुआ है. कई लोग दहेज कानून के दुरुपयोग की बात कर रहे हैं, तो कई, औरतों को विलेन बता रहा है. जैसे महिलाओं के साथ हिंसा या प्रताड़ना होती ही न हो.
सुप्रीम कोर्ट की सीनियर वकील जायना कोठारी का कहना है कि “आत्महत्या के किसी भी मामले को हल्के से नहीं लेना चाहिए. सुभाष का मामला बहुत गंभीर है. हमें इस मामले की पूरी जानकारी नहीं है. इस मामले में ट्रायल कोर्ट ही कुछ कहने में सक्षम होगा. लेकिन हमें आत्ममंथन करने की भी जरूरत है कि हमारे यहां दशकों से घरेलू हिंसा में महिलाओं को मारा जाता रहा है. हम इस से इतने दुखी क्यों नहीं होते हैं?”
बेंगलुरु की वकील गीता देवी कहती हैं कि “सभी मुकदमों को अलगअलग रूप में देखना चाहिए. किसी एक केस के आधार पर बाकियों के मामले में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता. हम ये नहीं कह सकते हैं कि ऐसे सारे मामले फ़र्जी होते हैं और गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए होता है. मुख्य समस्या यह है कि कानून ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है. इस स्थिति में कानून का दुरुपयोग होता है.” वो कहती हैं कि महिलाओं की लंबे समय से मांग रही है कि एक ऐसा कानून आए जो वैवाहिक संपत्ति में हिस्सा सुनिश्चित करे. समानता पर रिपोर्ट दायर किए 40 साल हो गए लेकिन महिलाओं की यह मांग पूरी नहीं हो पाई है. 2010 में विवाह नियम (संशोधन ) बिल पेश किया गया था. यह बिल वैवाहिक संपत्ति में हिस्सा सुनिश्चित करने से जुड़ा था. लेकिन बिल कानून बन नहीं पाया.
•2010 के अमेंडमेंट बिल में बहुत सी समस्याओं का हल था पर लोक सभा की समाप्ति के बाद इसे पास नहीं किया गया.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन