हर किशोरकिशोरी में कोई न कोई टैलेंट जरूर होता है. किसी की संगीत में रुचि होती है तो किसी की डांसिंग में. कुछ कंप्यूटर में दिलचस्पी रखते हैं तो कुछ आर्ट व क्राफ्ट में. किसी किशोरी को मेहंदी लगाने में महारत हासिल होती है तो कोई बहुत अच्छे सौफ्ट टौयज बना लेती है. लेकिन ज्यादातर किशोरकिशोरियां अपनी इस हौबी को सिर्फ हौबी के रूप में ही बनाए रखते हैं जबकि वे इसे कमाई का जरिया भी बना सकते हैं.
मोहित 10वीं कक्षा में पढ़ता था. पढ़ाई के साथसाथ कंप्यूटर में उस की विशेष रुचि थी. जब वह 8वीं क्लास में था तो उस के पापा ने उसे कंप्यूटर गिफ्ट किया था. स्कूल से घर आने के बाद वह कंप्यूटर पर टाइप करने की प्रैक्टिस करता था. हिंदी व अंगरेजी टाइपिंग में अच्छी स्पीड बनाने के साथसाथ उस ने एमएस वर्ड व फोटोशौप में भी महारत हासिल कर ली थी. एक दिन उस ने अपने पापा का विजिटिंग कार्ड डिजाइन कर के उन्हें दिखाया तो वे भौचक्के रह गए. उन्होंने मोहित की तारीफ की व पीठ थपथपाई. धीरेधीरे मोहित की चर्चा पूरे स्कूल में होने लगी. सब बच्चे उसे कंप्यूटर मास्टर कह कर पुकारते. यही नहीं मोहित ने कंप्यूटर की छोटीमोटी खराबियों को ठीक करना भी सीख लिया था.
एक दिन प्रिंसिपल मैम ने मोहित को अपने औफिस में बुलाया और कहा, ‘‘मोहित, हमारा कंप्यूटर खराब हो गया है और मुझे आज एक जरूरी लैटर ऐजुकेशन डिपार्टमैंट को भेजना है. क्या तुम इस कंप्यूटर को ठीक कर सकते हो?
मोहित ने कहा, ‘‘मैम, कोशिश करता हूं.’’
वह तुरंत सीपीयू खोल निरीक्षण कर के बोला, ‘‘मैम, इस की रैम खराब है, इसे बदलना पड़ेगा.’’
प्रिंसिपल मैम के औफिस में एक पुराना कंप्यूटर रखा था, मोहित ने उस की रैम निकाल कर मैम के कंप्यूटर के सीपीयू में लगा दी. रैम बदलते ही कंप्यूटर चल पड़ा.
‘‘शाबाश,’’ मैम ने कहा. फिर उन्होंने वह लैटर मोहित से ही टाइप करवाया.
उस दिन के बाद प्रिंसिपल मैम उस से कंप्यूटर से संबंधित सारा काम करवातीं और उसे काम के एवज में पैसे भी देतीं. इस तरह मोहित की हौबी कमाई का जरिया भी बन गई थी.
चेतन 11वीं कक्षा का छात्र था. उस के पापा गिटार बजाते थे इसलिए चेतन की भी गिटार बजाने में काफी रुचि थी. वह स्कूल से आने के बाद अपने पापा से गिटार बजाना सीखता था. स्कूल के कार्यक्रमों में चेतन बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता. सभी उस की तारीफ करते. चेतन ने सोचा क्यों न अपनी इस हौबी को कमाई का जरिया बना लिया जाए. उस ने अपने फ्रैंड्स से कहा कि जो गिटार सीखना चाहे मुझ से सीख सकता है लेकिन उसे फीस देनी पडे़गी. फिर क्या था, उस के कई फ्रैंड्स उस से गिटार सीखने लगे. चेतन को अब अपनी इस हौबी की बदौलत अच्छी आमदनी होने लगी.
एक बार चेतन और उस के फैंरड्स वाटर पार्क में ऐंजौय करने गए थे. वे अपने गिटार भी साथ ले गए थे. वाटरपार्क में राइड्स का किराया बहुत ज्यादा था. चेतन ने सोचा क्यों न अपनी इस हौबी से पैसे कमाए जाएं ताकि राइड्स का लुत्फ उठाया जा सके. सभी फैंरड्स ने अपनेअपने गिटार निकाल कर बजाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ लग गई. लोगों को उन की परफौर्मैंस इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने खूब सारे रुपए चेतन के ग्रुप को दिए. इस पैसे से उन्होंने न केवल वाटर पार्क में खूब मस्ती की बल्कि बाद में गु्रप बना पार्टी आदि में परफौर्म भी करने लगे. इस तरह चेतन की हौबी कमाई का जरिया बन गई.
साक्षी ने मेहंदी लगाना सीखा था. जब घर में या पड़ोस में कोई फंक्शन होता, सब लोग मेहंदी लगवाने के लिए साक्षी को याद करते. वह इतनी सुंदर मेहंदी लगाती कि लोग उस की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते. साक्षी के पड़ोस में रहने वाली रूपाली आंटी की बेटी की शादी थी, चूंकि उन दिनों शादियों का सीजन चल रहा था, इसलिए मेहंदी लगाने वाली ब्यूटीशियन नहीं मिल पा रही थी. जो मिलती भी वह हजारों रुपए मांगती. ऐसे में रूपाली आंटी ने साक्षी से कहा कि क्या तुम मेहंदी लगा सकती हो?
साक्षी तो जैसे पहले से ही तैयार थी. उस ने कहा, ‘‘हां, आंटी मैं दीदी के मेहंदी लगा दूंगी.’’
साक्षी ने मेहंदी वाली रात आंटी की बेटी के तो मेहंदी लगाई ही, साथ ही कई रिश्तेदारों ने भी उस से मेहंदी लगवाई. सब ने साक्षी की खूब तारीफ की. मेहंदी लगाने के बाद साक्षी जब अपने घर जाने लगी तो रूपाली आंटी ने उसे 2 हजार रुपए देते हुए कहा, ‘‘साक्षी, यह तुम्हारा गिफ्ट.’’
‘‘आंटी, मैं पैसे नहीं लूंगी, मम्मी गुस्सा करेंगी.’’
साक्षी ने पैसे लेने से इनकार कर दिया तो आंटी ने उसे समझाते हुए कहा कि साक्षी, जो भी मेहंदी लगाने आता, उस को तो पैसे देने ही पड़ते. वह पैसे मैं ने तुम्हें दे दिए. अब चुपचाप इन्हें रख लो.
बस, यहीं से साक्षी के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न इसे कमाई का जरिया बना लिया जाए. मुझे अपनी पौकेटमनी के लिए मम्मीपापा पर अब डिपैंड नहीं रहना पड़ेगा. साक्षी अब कई त्योहारों व अन्य अवसरों पर मेहंदी लगाने का काम करती और खूब कमाई भी करती.
नेहा 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस के पापा एक अच्छे चित्रकार थे. इसलिए नेहा की भी ड्राइंग में रुचि थी. वह बड़ी हो कर एक आर्टिस्ट बनना चाहती थी. वह किसी का चित्र हूबहू बना देती थी. स्कूल में सभी टीचर्स नेहा की तारीफ करते नहीं थकती थीं. जब भी स्कूल में कोई फंक्शन होता तो नेहा को ही डैकोरेशन व पोस्टर आदि बनाने के लिए कहा जाता, नेहा को भी इन कामों में खूब मजा आता. स्कूल में बच्चे उसे पिकासो कह कर पुकारते थे.
स्कूल की 10वीं की वार्षिक परीक्षा शुरू होने वाली थी. मैडम ने बच्चों से कहा कि वे आर्ट प्रोजैक्ट तैयार करें, क्योंकि उस के अंक भी जोड़े जाएंगे, बच्चे सोच में पड़ गए कि क्या करें, उन की आर्ट भी अच्छी नहीं थी. नेहा ने बच्चों की इस जरूरत का फायदा उठाया. उस ने कहा जो भी अपना प्रोजैक्ट बनवाना चाहे, मुझ से बनवा सकता है, लेकिन मेरी फीस देनी पडे़गी.
कई बच्चे तैयार हो गए. नेहा ने उन के प्रोजैक्ट तैयार कर दिए. बच्चों ने भी नेहा की फीस उसे दे दी. हौबी से होती कमाई देख कर नेहा की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने अपने पापा को जब पूरी बात बताई तो उन्होंने उसे शाबाशी दी और कहा, ‘‘बेटी, कमाई करने में कोई बुराईर् नहीं है. बस, अपनी पढ़ाई डिस्टर्ब न होने देना.’’
मोहित, चेतन, साक्षी और नेहा की तरह किशोरकिशोरियां अपनी हौबी को कमाई का जरिया बनाते हैं. उन में आत्मविश्वास की कमी नहीं होती. वे हर मुश्किल काम करने में हिचकिचाते नहीं हैं, उन का यह आत्मविश्वास उन्हें आगे बढ़ाने में सहायक होता है. बड़े होने पर वे अपनी मंजिल आसानी से पा लेते हैं.
हौबी को आमदनी का जरिया बनाने वाले किशोरकिशोरियों को अपनी जरूरत के लिए मम्मीपापा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता दोस्तों के साथ पार्टी या ड्रैसेज खरीदने के लिए वे खर्च स्वयं उठा लेते हैं. यही नहीं मम्मीपापा की बर्थडे या मैरिज ऐनिवर्सरी पर उन्हें अपनी कमाई से जब वे गिफ्ट देते हैं तो मम्मीपापा की खुशी का ठिकाना नहीं रहता. दोस्तों की बर्थडे पार्टी में वे अपने कमाए पैसे से गिफ्ट दे सकते हैं. छोटेछोटे खर्च के लिए उन्हें मम्मीपापा से पैसे नहीं मांगने पड़ते.