‘रेलगाड़ी छुक छुक छुक छुक छुक छुक….बीच वाली स्टेशन वोले रूक रूक रूक रूक रूक रूक…’ कई सालों पहले फल्म आशीर्वाद में अशोक कुमार ने यह गाना गाया था. बिहार में एक ऐसा गांव है, जिसके लोगों के जीवन की धड़कन रेलगाड़ी की छुक-छुक से जुड़ी हुई है. रेल और उस गांव के लोगों का लगाव और जुड़ाव ऐसा है कि दोनों एक दूसरे के बगैर अधूरा महसूस करते हैं. साल 1910 से गांव के हर घर का कोई न कोई लोग रेलवे में नौकरी करता आ रहा है. गांव का नाम है तेज पांडेपुर, लेकिन वह ‘रेल गांव’ के नाम से ज्यादा मशहूर है. बिहार के बक्सर जिला के रघुनाथपुर रेलवे स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर बसा है यह अनोखा गांव. इस गांव के लोग न खेती करते हैं, न गाय-भैंस पालते हैं, न ही किसी दूसरे महकमों में नौकरी करते हैं. 4 पीढ़ियों से समूचे गांव के लोगों के दिलों- दिमाग में रेल और सिर्फ रेल ही बसा है. हर नई पीढ़ी का बस एक ही ललक और सपना होता है- रेलवे में नौकरी.

साल 1910 में गांव के रामरेखा पांडे ने रेलवे में चीपफ कंट्रोलर की नौकरी शुरू की तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि पीढ़ी दर पीढ़ी पूरा गांव उनके दिखाए राह पर चल पड़ेगा और गांव की पहचान ‘रेल गांव’ के रूप में हो जाएगी. उन्होंने अपने गांव के कई लोगों को रेलवे में नौकरी लगवाई, उसके बाद तो मानो हरेक का जूनून ही बन गया रेलवे की नौकरी पाना. 300 एकड़ जमीन पर बसे इस गांव की आबादी एक हजार के करीब है. इस गांव में ज्यादातर घरों में ताला लटका हुआ रहता है क्योंकि रेलवे में नौकरी मिलने के बाद लोग गांव बाहर ही रहते हैं. रेलवे के सभी 13 जोनों में तेज पांडेपुर का कोई न कोई आदमी पोस्टेड है.

गांव के रहने वाले उमाशंकर दूबे बताते हैं कि पिछले 100 सालों से गांव के लोगों में रेलवे में नौकरी करने की दीवानगी सवार है. सरकार चाहे किसी की हो या रेल मंत्री चाहे कोई भी हो इस गांव के लोगों को रेलवे में नौकरी मिलने में कोई दिक्कतें नहीं आई. रेलवे की बहाली के लिए होने वाले हर ग्रेड के इम्तिहानों में लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और बाकायदा इसके लिए जी तोड़ तैयारी भी करते हैं. रेलवे की नौकरी की तैयारियों में लगा दिलीप बताता हैं कि गांव के युवा बैंक, यूपीएससी, बीपीएससी आदि के इम्तिहानों में शामिल ही नहीं होते हैं. वह भी रेलवे में नौकरी पाने की तैयारियों में लए हुए हैं और इसके लिए कोचिंग ले रहे हैं.

साल 1930 में आरपी दूबे रेलवे में केबिन मैन के पद पर बहाल हुए थे आज उनकी तीसरी पीढ़ी भी रेलवे में नौकरी कर रही है. दूबे के भाई अवधेश ने भी रेलवे सुरक्षा बल में नौकरी की. उनके बेटे तारकेश्वर और वेंकटेश आरपीएफ में इंस्पेक्टर बने. उस परिवार की तीसरी पीढ़ी के कृष्ण कुमार भी गार्ड के पद पर बहाल होकर रेलवे की सेवा में लगे हुए हैं. कैलाश पांडे की भी तीसरी पीढ़ी रेलगाड़ियों की छुक छुक को रफ्तार देने में लगी हुई है. गांव के लोगों को पूरा भरोसा है कि आगे भी इस गांव के लोगों को रेलगाड़ी बुलाती रहेंगी और उसकी सीटियां उन्हें लुभाती रहेंगी.

                               

          

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