कूड़ा दिल्ली के लिए सबसे बड़ी समस्या बन रहा है. पिछले कई साल से इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया है. आकलन बता रहे हैं कि 2021 तक दिल्ली में 15,750 टन कचरा प्रतिदिन पैदा होगा. मास्टर प्लान-2015 में ही दिल्ली में 4 नई लैंडफिल साइटें प्रस्तावित थीं, जिन्हें अब तक शुरू नहीं किया जा सकता है.
इस मास्टर प्लान के मुताबिक राजधानी में अब तक 16 लैंडफिल साइट पूरी तरह भर चुकी हैं. चार पर अभी कचरा डालने का काम चल रहा है. चार नई साइट शुरू की जानी है. गौरतलब है कि दिल्ली में 2002 में 5543 टन कूड़ा पैदा होता था. डीडीए के पूर्व योजना आयुक्त आरजी गुप्ता ने इसे लेकर चिंता जाहिर की है और एक प्रपोजल तैयार किया है. बढ़ती आबादी की वजह से दिल्ली में न तो कूड़ा कम होगा और न ही लैंडफिल साइट्स से समस्या सुलझने वाली हैं. जबकि लैंडफिल साइट खुद खतरा बन रही हैं. उनमें आग की घटनाएं बढ़ रही हैं और प्रदूषण भी फैल रहा है.
ऐसे में समस्या से निपटने के लिए लैंडफिल साइटों के आसपास ग्रीन कवर बढ़ाना जरूरी है. इससे वहां निकलने वाली मिथेन गैस का रिसाव भी कम होगा और ग्रीनरी वहां के प्रदूषण को कम करेंगी. साथ ही कूड़े से बिजली बनाने की योजना को ईमानदारी से बढ़ावा देने की जरूरत है. साथ ही कूड़े के इस्तेमाल बढ़ाने जैसे सड़कों आदि में इसके उपयोग करना भी मौजूदा समय की जरूरत है. उन्होंने बताया कि 1980 में मजनू का टीला के नजदीक लगातार तीन वर्ष तक कचरे से बिजली बनाई गई थी.
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