देश की राजधानी में रोजाना 18 बच्चे गायब हो रहे हैं. पांच सालों में (वर्ष 2012 से 2017 तक) 41,394 बच्चे गायब हुए हैं. आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत दिल्ली पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, सिर्फ वर्ष 2017 में ही दिल्ली में 6454 बच्चे गायब हुए. इनमें 3915 लड़कियां और 2535 लड़के हैं.

इन आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में रोजाना औसतन 18 बच्चे गायब हो रहे हैं. पुलिस इनमें से 70 फीसद यानी कुल 4391 बच्चों को ही तलाश पाई है. 2063 बच्चों का अभी तक कुछ पता नहीं चल सका है. गायब हुईं 3536 लड़कियों की उम्र 12 से 18 साल के बीच है.

वर्ष 2016 में 6921, वर्ष 2015 में 7928, वर्ष 2014 में 7574, वर्ष 2013 में 7235 और वर्ष 2012 में 5284 बच्चे गायब हुए थे. आंकड़ों के हिसाब से वर्ष 2016 में रोजाना 19 बच्चे जबकि 2015 में रोजाना 22 बच्चे लापता हुए थे. बच्चों की गुमशुदगी के सबसे अधिक मामले उत्तर-पूर्वी व उत्तर- पश्चिम दिल्ली में दर्ज हुए हैं. वर्ष 2016व 2017 में इन जिलों से कुल 732 बच्चे गायब हुए हैं.

चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) संस्था की क्षेत्रीय निदेशक (नॉर्थ) सोहा मोइत्र ने कहा कि दिल्ली में लापता होने वाले 10 में से 6 बच्चे कभी नहीं मिल पाते हैं. लापता बच्चों को ढूंढने के लिए क्राइम ब्रांच ने कई वर्ष पूर्व मिलाप अभियान की शुरुआत की थी. इसके तहत दिल्ली के विभिन्न बाल सुधार गृहों की तलाशी लेकर वहां रह रहे बच्चों की पहचान कर क्राइम ब्रांच ने उनके परिजनों से मिलाने का सिलसिला शुरू किया था.

पूर्व पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी के कार्यकाल के दौरान यह अभियान शुरू किया गया था, जिसे काफी सराहा गया था. दरअसल, गाजियाबाद पुलिस ने मुस्कान नाम से बच्चों को ढूंढने का अभियान शुरू किया था. उसी को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने मिलाप नाम से अभियान शुरू किया था, लेकिन धीरे-धीरे यह अभियान सुस्त पड़ गया.

एक पुलिस अधिकारी की माने तो अगर मिलाप अभियान को बेहतर ढंग से चलाया जाता तो दिल्ली में लापता बच्चों की संख्या इतनी नहीं बढ़ती. दिल्ली पुलिस लापता बच्चों के मसले पर गंभीरता से जांच नहीं करना चाहती है. पुलिस को जहां भी लावारिस बच्चे मिलते हैं, उन्हें पास के बाल सुधार गृहों में रखवा देती है. स्थानीय पुलिस उनसे पूछताछ कर उनके परिजनों के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं करती है.

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