पतंगबाजी दुनियाभर में मशहूर है. कई देशों में अलगअलग तरह के पतंगबाजी महोत्सव मनाए जाते हैं, जो वहां के पर्यटन को बढ़ावा देते हैं. एकदूसरे की पतंग काट कर जीत का जो मजा मिलता है वह पतंगबाजों के लिए अद्भुत होता है. पतंग काटने में हवा का रुख और पतंग की कलाबाजी के साथसाथ पतंग उड़ाने में इस्तेमाल होने वाली डोर यानी मांझा का भी खास महत्त्व होता है. पतंग में आगे की ओर अलगअलग तरह के मांझे और लोहे के तार तक का प्रयोग होता है. पतंग के साथ लगे मांझे के बाद एक अलग किस्म की डोर लगाई जाती है. पतंग के साथ लगा मांझा ही दूसरी पतंग के मांझे को रगड़ता है और उसे काट देता है. मांझा दूसरी पतंग की डोर को काट सके, इस के लिए मांझे में कांच और लोहे का बुरादा लगाया जाता है. देश में कौटन के धागे से तैयार पतंग की डोर बनाई जाती है.

हाल के कुछ सालों में चीन से नायलौन से तैयार की गई डोर बाजार में आने लगी है. नायलौन की यह डोर आसानी से टूटती नहीं है. उस के ऊपर जब लोहे और कांच का बुरादा चढ़ाया जाता है तो यह कौटन वाले भारतीय मांझे से उड़ रही पतंग की डोर को आसानी से काट देती है. चाइनीज मांझे से पतंग के साथसाथ उड़ाने वाले के हाथ भी कटने लगे. सब से खतरनाक काम तो तब होता है जब कटी हुई पतंग किसी साइकिल या मोटरसाइकिल सवार के गले, मुंह या हाथ में लिपट जाती है. इस से कई बार गले की नसें तक कट जाती हैं. इस तरह की कई घटनाएं देश में घट चुकी हैं. इस कारण देश में चाइनीज मांझे को नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने प्रतिबंधित कर रखा है. नायलौन के साथ सिंथैटिक मैटेरियल से तैयार दूसरे मांझे बेहद खतरनाक होते हैं.

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