भारतीय राजनीति में एक समय था जब दलित राजनीति का केंद्र धार्मिक अंधविश्वासों और कर्मकांडों के खिलाफ मोरचा लेना था, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के चलते ही सालोंसाल दलितपिछड़ों ने बर्बर प्रताड़ना झेली. लेकिन लंबे चले संघर्ष के बाद अब यही कर्मकांड दलितपिछड़ों पर हावी होने लगे हैं. वे इस के जंजाल में फंसते जा रहे हैं. दलित आंदोलन में कर्मकांडों का विरोध इसलिए किया गया था क्योंकि इस बहाने कर्मकांडी विचार थोपने का काम किया जाता था. कर्मकांड लोगों को डराने और दानदक्षिणा लेने के काम आते हैं. बहुजन समाज पार्टी और बामसेफ ने अपने विचारों से दलितों की चेतना जगाने का काम किया था. लेकिन जब बसपा ने सत्ता की चाबी हासिल करने के लिए मनुवादियों से सम झौता करना शुरू किया तो दलित कर्मकांड में फंसने लगे.

मायावती ने अमेठी का नाम बदल कर छत्रपति साहूजी महाराज नगर रख दिया. लेकिन इस से दलित चेतना नहीं जगी. अमेठी के खुटहना गांव में रहने वाले मोतीलाल को बुढ़ापे में रीतिरिवाज से शादी करने की घटना बताती है कि कर्मकांड की जड़ें कितनी गहरी हैं. कर्मकांड में फंसे दलित मायावती को छोड़ पुराणवादियों के चक्कर में पड़ गए हैं. अमेठी देश के एक जानेमाने शहर का नाम है. राजनीतिक रूप से अमेठी देश पर सब से लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी से जुड़ा है. पहले यह लोकसभा क्षेत्र था जो सुल्तानपुर जिले में आता था. अमेठी, सुल्तानपुर और रायबरेली कांग्रेस के सब से मजबूत राजनीतिक किले जैसे थे. 1 जुलाई, 2010 को उत्तर प्रदेश की उस समय की मायावती सरकार ने अमेठी को उत्तर प्रदेश का 72 वां जिला बना दिया. अमेठी में सुल्तानपुर जिले की 3 तहसील मुसाफिरखाना, अमेठी, गौरीगंज तथा रायबरेली जिले की 2 तहसील सलोन और तिलोई को मिला कर जिला बनाया गया था.

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