भारत में सत्ता से जुड़े सभी पार्टियों के लोग भाजपा के कंपीटिशन में धर्म की स्थापना में जुटे दिख रहे हैं, जबकि यूनान से प्रकाश की एक चमचमाती लौ दिखाई दे रही है. एथेंस में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ है जो पुरोहितों और बिशपों की स्थिति सिविल सेवकों के रूप में समाप्त कर देगा और देश को चर्च और राज्य से अलग करने के लिए एक कदम आगे लाएगा.

समझौते के तहत यूनान सरकार ने चर्चों को दिया जाने वाला सरकारी खर्च बंद करने का निर्णय लिया है. पादरियों को मिला सिविल सेवक का दर्जा खत्म होगा. यूनान में चर्च और राज्य के अलग होने का यह पहला कदम है और रास्ता अभी लंबा है. इसे चर्च के नेताओं के साथसाथ सरकार और सांसदों द्वारा अनुमोदित किया जाना है.

यूनान के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रस और आटोसेफर्नियस और्थोडौक्स चर्च के प्रमुख आर्कबिशप आईरोनिमोस के बीच इस संबंध में संयुक्त समझौता हुआ है.

समझौते के अनुसार, चर्च की संपत्तियों, कब्जे और निवेशों का प्रबंधन करने के लिए यूनान राज्य और चर्च एक संयुक्त निधि तैयार करेंगे. इस में मौजूदा चर्च के 10 हजार पादरियों का वेतन शामिल होगा, जो अभी सिविल सेवक पेरोल का हिस्सा हैं. यानी इन का वेतन सरकारी खजाने से जा रहा है.

कई पादरी और नेता प्रधानमंत्री सिप्रस और आर्कबिशप के बीच हुए समझौते की आलोचना कर रहे हैं. यूनानी क्लेरिक्स संघ ने शिकायत की है कि पादरियों की सिविल सेवकों की स्थिति खत्म होने से उन के मौजूदा अधिकार भी समाप्त हो जाएंगे. उन का कहना है कि पुरोहितों को धोखा दिया गया है. इस समझौते के बारे में उन से कोई सलाहमशवरा नहीं किया गया.

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