देश की महिला जूनियर हाकी टीम के एशिया कप 2023 चैंपियन बनने के बाद कप्तान प्रीति आज खबरों में आ गई है. प्रीति के खेल प्रदर्शन से यह माना जा रहा है कि भविष्य की हॉकी के जादूगर प्रीति ही है. भारतीयों का प्रेम हॉकी के प्रति आकर्षण असंदिग्ध माना जाता है. भले ही क्रिकेट लंबे समय से लोकप्रियता की सीमाओं को पार कर चुका है मगर एक समय था जब हाकी का जुनून भारतीयों में देखने लायक था.

एशिया कप में भारत ने जापान में खेले गए टूर्नामेंट के फाइनल में एक दो नहीं चार दफा के चैंपियन दक्षिण कोरिया को 2-1 से हराकर पहली बार इस खिताब को अपने नाम किया है ऐसे में इस टीम की कप्तान प्रीति की सफलता पर देश स्वाभाविक रूप से गर्व कर रहा है और हाकी प्रेमी प्रीति उनकी और बड़ी आशाओं के साथ देख रहे हैं . यहां सच बताना भी अपरिहार्य है कि प्रीति के लिए यह सफर आसान नहीं था.

प्रीति के मुताबिक, कई दफा ऐसा हुआ कि उसके पास डाइट के पैसे भी नहीं होते थे. लेकिन उसने खेलना नहीं छोड़ा. सोनीपत के भगत सिंह कालोनी की रहने वाली प्रीति के पिता शमशेर राजमिस्त्री और मजदूरी का काम करते हैं. मां  सुदेश  खेतों में मजदूरी करती रही . सोनीपत के गरीब परिवार में पली बढ़ी प्रीति अपने संघर्ष से दूसरों के लिए प्रेरणा बनी है. प्रीति के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण भी प्रीति ने कभी हार नहीं मानी. महज 10 साल की उम्र में ही प्रीति ने खेलना शुरू किया. उसके पिता ने मजदूरी कर प्रीति को इस मुकाम तक पहुंचाया है. प्रीति का सपना अब बेहतर प्रदर्शन करते हुए सीनियर टीम में जाकर ओलंपिक खेलना है.

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