कोरोना महामारी के बाद जापान में जिस तरीके की बहुत जल्दी लोगों को एक दूसरे से मिलनेजुलने में ढील दी गई, उस के कारण जापान एक और दुर्लभ बीमारी से जूझ रहा है. वहां एक ऐसे बैक्टीरिया का प्रकोप बढ़ा है जो शरीर के ऊतकों पर प्रहार कर उन की ह्त्या कर रहे हैं. इस बैक्टीरिया के ज़्यादा शिकार 15 साल से कम आयु के बच्चे हैं. इस बैक्टीरिया को मांसभक्षी नाम दिया गया है. यानी, मांस खाने वाला बैक्टीरिया.

इस बीमारी को स्ट्रेप्टोकोकल टौक्सिक शौक सिंड्रोम (एसटीएसएस) कहा जाता है. यह बैक्टीरिया इतना खतरनाक है कि 48 घंटे में लोगों की जान ले लेता है. जापान के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ इन्फैक्शियस डिजीज के मुताबिक अब तक वहां इस के करीब 1,000 मामले सामने आ चुके हैं. सिर्फ जापान ही नहीं, तमाम और देशों में इसी तरह के केसेज सामने आ रहे हैं. इन में कई यूरोपीय देश शामिल हैं.

इस बैक्टीरिया को मांस खाने वाला कहा जा रहा है. दरअसल, यह सीधे मांस नहीं खाता बल्कि इंसान के टिश्यू को मारता है. इसलिए इसे मांस खाने वाला कहते हैं. यह बीमारी ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया की वजह से हो रही है. यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए सब से ज्यादा खतरनाक है. इस से संक्रमित लोगों में सब से पहले बदन में सूजन और गले में खराश होती है. ग्रुप-ए स्ट्रेप्टोकोकस जब टिश्यू या ऊतक को मारता है तो उस कंडीशन को नेक्रोटाइजिंग फसाइटिस कहा जाता है. इस के अलावा शरीर में दर्द, बुखार, लो ब्लडप्रैशर, नेक्रोसिस (शरीर के ऊतकों का मरना), सांस लेने में समस्या, और्गन फेलियर जैसी समस्याएं भी होती हैं. इस के कुछ ही घंटों बाद मौत हो जाती है.

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