प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में नार्सिसस की कहानी बताई गई है. नार्सिसस एक शिकारी था. वह बहुत ही अहंकारी व्यक्ति था. उस ने जंगल की अप्सरा इको के प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.
एक दिन जब वह जंगल में शिकार कर रहा था तो उसे एक तालाब मिला. उस ने अपनी प्यास बुझाने का फैसला किया. जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुका, पानी में पहली बार खुद को देखा और अपनी सुंदरता से अभिभूत हो गया. समय बीतता गया और उस की प्यास बढ़ती गई लेकिन वह वहीं बैठा रहा और धीरेधीरे खुद को देखता रहा व अपने ही प्रतिबिंब से प्यार करने लगा. नार्सिसस वहीं बैठा रहा जब तक कि उस की मृत्यु नहीं हो गई और वह तालाब के किनारे एक सुनहरे फूल में बदल गया.
कहीं आप भी तो खुद को सब से बेहतर नहीं समझते और अपने को नार्सिसस की तरह सब से ज्यादा प्यार तो नहीं करते. अगर ऐसा है तो यह एक बड़ी समस्या का कारण बन सकता है. हमारे आसपास ही बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते. ये लोग हमारे फैमिली मैंबर्स, हमारे दोस्त भी हो सकते हैं. जैसे कि आभा का कहना है की मेरी सासुमां को लगता है, वह द बेस्ट है, हर काम उस से अच्छा कोई कर ही नहीं सकता. अपनी इसी सोच के चलते वह हर बात में मुझे नीचे दिखाती है. पहले मुझे बहुत बुरा लगता था पर अब मैं समझ गई हूं कि वह बीमार है. लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी मैं उसे यह बात नहीं समझा पाई की वह बीमार है. इस समस्या के शिकार आप भी हो सकते हैं. इसलिए आइए जानें कि यह समस्या क्या है.
यह एक मैंटल प्रौब्लम है
खुद की तारीफ सुनना भला किसे पसंद नहीं होता. हम सभी यही चाहते हैं कि हमारे अपने हमारी तारीफ करें. लेकिन दूसरी तरफ इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि तारीफ उसी की होती है जो तारीफ के काबिल हो और उस ने कुछ ऐसे काम किए हों जो लोगों द्वारा पसंद किए गए हों. जबकि इस के उलट, जिस के काम अच्छे न हों, तो लोग उस की बुराई करने से भी पीछे नहीं हटते. यह सामाजिक नियम है और बस, समस्या की शुरुआत भी यहीं से होती है.
क्या है नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर
‘नार्सिसिस्ट’ वह मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसे नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऔर्डर (एनपीडी) कहा जाता है. यह डिसऔर्डर कई तरह के पर्सनैलिटी डिसऔर्डरों में से एक है. इस में व्यक्ति खुद को इतनी अधिक अहमियत देते हैं कि उन्हें अपने आगे कोई और नज़र ही नहीं आता. वे खुद को ही सर्वोत्तम मानते हैं. बस, खुद में आत्ममुग्ध रहना उन की प्राथमिकता होती है.
ऐसे लोग जो भी बोलते हैं और करते हैं उस में उन की मंशा होती है कि सामने वाला उन से पूरी तरह प्रभावित हो कर आकर्षित हो जाए. खुद को सर्वश्रेष्ठ मानना और बुराई सुनने पर झगड़ पड़ना, यह मैंटल डिसऔर्डर की निशानी है. इसे मैडिकल भाषा में पर्सनैलिटी डिसऔर्डर कहा जाता है. इस का समय पर इलाज न किया जाए तो नतीजे घातक हो सकते हैं.
कब होती है समस्या
ऐसे व्यक्ति चाहतें है कि लोग हर वक्त उन की तारीफ करें, उन के कहे अनुसार चलें. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो ये लोग नाराज हो जाते हैं, बुरा मान जाते हैं, अपने ईगो पर ले लेते हैं. सामने वाले से झगड़ा करने में भी पीछे नहीं रहते. सामान्य रिश्ते निभाने में भी उन्हें तकलीफ होती है और दूसरों के लिए उन के मन में सहानुभूति की कमी होती है.
बीमारी घेर लेती है कुछ इस तरह
अपने व्यवहार की वजह से जब इन लोगों को समाज की उपेक्षा मिलती है, तो ये लोग बिखर जाते है. इन का कौन्फिडेंस लैवल जीरो हो जाता है. ऐसे लोग जीवन में दुखी और अधूरे रहते हैं. निराशा होने पर शर्म, अपमान और खालीपन की भावना इन में घर कर जाती है. हार के डर से कुछ भी करने की अनिच्छा भी इं में पैदा हो जाती है और इसी वजह से इन में डिप्रैशन और एंग्जायटी के लक्षण भी साथ में आ जाते हैं.
लक्षण क्या है
-इन लोगों को खुद की बुराई बरदाश्त नहीं होती.
-ये लोग उम्मीद करते है कि इन्हें हर जगह स्पैशल ट्रीटमैंट मिले और जब ऐसा नहीं हो पाता, तो ये लोग बहुत जल्दी चिढ़ जाते हैं.
-ये लोग बहुत मूडी होते हैं. अपना मन होता है तो ठीक से बात करतें हैं, मूड नहीं है तो बात नहीं करते.
-ये जिद्दी और घमंडी भी होते हैं.
-सैल्फसैंटर्ड होते हैं.
-ऐसे लोगों को लगता है कि जीवन में इन्होंने बहुतकुछ पा लिया है. जबकि, जितना वे शोऔफ करते हैं उतना उन्होंने अपनी लाइफ में कुछ खास हासिल नहीं किया होता.
-ये लोग दूसरों को बातबात में नीचा दिखाते हैं.
इस का इलाज कैसे करें
* मैडिटेशन करने से मन शांत होता है और बेकार की बातें मन में कम आती हैं.
* खुद अपने को परखें, अपने पौजिटिव और नैगेटिव का आकलन खुद करें.
* सिर्फ अपनी अपनी न कहें बल्कि दूसरे लोग जो कह रहे हैं उस को ध्यान से सुनें भी.
* दूसरों से अपनी तुलना न करें.
* खुद की प्रशंसा सुनने की सनक से बचें.
* अगर आप में कुछ गलत है तो उसे स्वीकार करें.
* अगर आप के रिश्तेदार लोग डाक्टर के पास जाने की सलाह दे रहे हैं, तो इसे अना का मसला न बनाएं बल्कि उन की बातों को समझें और उन का सहयोग करें.