बात सही है, आजकल शहरशहर गलीगली में भगवान होने लगे हैं. भोले बाबा उर्फ सूरज पाल भी खुद को भगवान कहता था. अब भला कोई दलित मनुस्मृति को ठेंगा दिखाते खुद के विष्णु का अवतार होने का दावा करने लगे, यह बात ब्राह्मण समुदाय के धर्माचार्य कैसे हजम कर लेते. यह तो सरासर पैर के मुंह पर पड़ने जैसी बात है. यह और बात है कि भगदड़ में मरे अपने भक्तों की जान यह दलित भगवान भी नहीं बचा पाया इसलिए अब वह भी ऊंची जाति वाले धर्मचार्यों की तरह कह रहा है कि जो आया है उसे जाना ही पड़ेगा.
यही वह ब्रह्म वाक्य है जिस से ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण संतों का धंधा चलता है कि आनेजाने की इस जर्नी से बचने यानी मोक्ष मुक्ति के लिए दानदक्षिणा देते रहो भगवान तुम्हारा भला करेंगे पर दिक्कत तब खड़ी होने लगी जब भला करने का यह ठेका नीचे इफरात से पसरे भगवान के दलाल लेने लगे.
आखिर क्या वजह है और क्या इस में आसाराम, राम रहीम और निर्मल बाबा जैसे गैर ब्राह्मण बाबा कहीं फिट होते हैं जो अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष रवीन्द्र पुरी को यह कहना पड़ा कि आजकल ऐसा ट्रेंड चला है कि हर कोई अपने आप को उपासक पुजारी नहीं, भगवान कह रहा है. खुद को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और राम कहने वाले संतों पर कार्रवाई होना अति आवश्यक है. प्रयागराज कुम्भ में ऐसे व्यक्तियों को जमीन नहीं दी जाएगी. तीन अखाड़ों ने अपने 112 संतों को नोटिस दिया है.
वीन्द्र पुरी उज्जैन कुम्भ की तैयारियों का जायजा लेने आए तो उन्होंने यह भी कहा कि जो हमारी सनातन संस्कृति के विरोध में जाएगा उस पर भी कार्रवाई होगी. 112 संतों को नोटिस क्यों दिया गया है, इस सवाल के जवाब में वे गोलमोल बोल ये बोले कि यह गुप्त मामला है. अगर ये संत 30 सितम्बर तक नोटिस का संतोषजनक जवाब नहीं देंगे तो उन्हें महाकुम्भ 2025 में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.
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