नरेंद्र मोदी की सरकार ने मुसलिम समाज को खुश कर या भ्रमित कर उस पर हिंदू वोटों का प्रभुत्व जताने के लिए 2019 में मुसलिम वीमन (प्रोटैक्शन औफ राइट्स औफ मैरिज) एक्ट बनाया था और उस में तुरंत दिए गए तलाक को न केवल अवैध ठहराया था, बल्कि इस तरह के तलाक देने वाले पति को 3 साल की सजा भी देने का प्रावधान रखा.

यह सामाजिक सुधारों के लिए किया गया होता तो कानून में तलाकशुदा हर औरत के लिए कुछ न कुछ होता, पर इस का लक्ष्य केवल राजनीतिक लाभ उठाना था. यह कानून बना कर न भाजपा को कोई वाहवाही मिली न मोदी को.

मुसलिम औरतें सिर्फ 3 तलाक की मारी नहीं हैं. वे तलाक की त्रासदी वैसे ही भुगत रही हैं जैसे हिंदू औरतें भुगत रही हैं. मुसलिम कानून में तलाक का प्रावधान सदियों से है, इसलिए समाज का गठन उसी तरह हुआ, पर फिर भी हिंदू विधवा, परित्यक्ता और तलाकशुदा औरत की तरह आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग जहां आज बहुत सी सौगात लाया है वहीं इस ने सामाजिक तानबाने को भी प्रभावित किया है. यही कारण है कि एक ओर जहां आदमी चांद पर जा रहा है, वहीं दूसरी ओर जमीन पर पतिपत्नी के संबंधों में दरार पड़ रही है.

एक सर्वे के आधार पर बताया गया है कि भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है. अकेले दिल्ली में एक साल में तलाक के लगभग 19 हजार मामले सामने आए. यहां एक दशक पहले तलाक की जितनी घटनाएं होती थीं उस में अब 20 फीसदी की वृद्धि हुई है.

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