तीन तलाक कानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाओं को क्या हासिल होगा? अब यह प्रश्न सामने है. केन्द्र सरकार ने जो मसौदा ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकारों का संरक्षण विधेयक - 2017’ में रखा है उसकी कमियों को लेकर जागरूक मुस्लिम महिलाओं ने अपने तर्क रखे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन कहती हैं ‘इस कानून में महिलाओं के मुद्दे गायब दिख रहे हैं.’ नाइश कहती हैं, ‘आदमी तीन तलाक देता है तो औरतों को फौरन घर से बाहर कर देता है. अगर कानून में यह प्रावधान होता कि पति की गैरमौजूदगी में पति के परिवार का कोई भी रिश्तेदार महिला को घर से बेदखल नहीं कर सकेगा तो महिला के हित में होता.’

नाइश हसन कहती हैं, ‘कई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक देकर पत्नी और बच्चों को बिना कोई गुजारे के लायक पैसा देकर गायब रहते हैं, उनका क्या किया जायेगा? इस कानून में उनको भी लाना चाहिये था. पति के जेल जाने के बाद पत्नी और उसके बच्चों का गुजारा कैसे होगा? इस विषय में भी कानून मौन है. इन कानूनों को जोड़े बिना तीन तलाक कानून से औरतों को कोई राहत नहीं मिलने वाली. ऐसे में औरतों पर बोझ बढ जायेगा. पति अपनी जमानत के लिये कोर्ट के चक्कर लगायेगा. पत्नी भरणपोषण के लिये कोर्ट के चक्कर लायेगी. ऐसे में पूरा परिवार परेशान हो जायेगा." नाइश का मानना है कि यह बिल जल्दबाजी में वोटो की गोलबंदी के लिहाज से तैयार किया गया है. अगर औरतों की व्यथा को ध्यान में रखा जाता तो शायद यह सार्थक होता.

औल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लौ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा,"यह बिल परिवार को बरबाद करने वाला है. तीन साल की सजा का प्रावधान ठीक नही है. बिल के तीन तलाक को अपराध बना दिया गया है.  जिससे परिवार में सुधार की गुजाइंश खत्म हो गई है. ऐसे में अब लोग शादियां करने से डरेंगे. कानून ऐसा होना चाहिये जिसमें पति तीन तलाक देने से डरे और आपस में सुलह की गुजाइंश भी बनी रहे. कानून बनने से पहले इसके सभी पहलुओं पर विचार हो. ऐसे में विपक्ष की मांग के अनुसार कानून बनाने से पहले ज्वाइंट सलेक्ट कमेटी में इसको भेजा जाये."

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