मी टू मुहिम की आंच नेताओं तक नहीं पहुंचना कम हैरत की बात नहीं रही, वजह शोषण राजनीति में भी कम नहीं होता, हैरत की बात यह भी है की मी टू के हो हल्ले में सबसे ज्यादा दिलचस्पी राजनेताओं ने ही ली और सबसे ज्यादा बयानबाजी भी उन्होंने ही की मानो नैतिकता की सारी ज़िम्मेदारी निभाने का ठेका उन्हीं के कंधों पर आ गया हो. शुरुआत चूंकि एम जे अकबर से हुई थी इसलिए तमाम नेता संभल कर बोले. सबसे ज्यादा अहम बयान एक्ट्रेस से केंद्रीय मंत्री बनीं स्मृति ईरानी ने दिया कि जिस पर आरोप लगा है वही सफाई भी देगा.

एम जे अकबर ने विदेश से लौटने के बाद उम्मीद के मुताबिक ही बयान दिया कि वे निर्दोष हैं और उन पर लगाए गए तमाम आरोप झूठे हैं लेकिन इससे बात नहीं बनने वाली क्योंकि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी पहले ही ऐलान कर चुकीं थीं कि मी टू मुहिम से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए चार रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाई जाएगी जो ऐसे हर मामले की व्यापक सुनवाई करेगी.

बकौल मेनका गांधी कमेटी यानि आयोग में वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी और कानून के जानकार होंगे. यौन शोषण की शिकायतों से निबटने के सभी तरीकों और इससे जुड़े कानूनी और संस्थागत ढांचे को तैयार करने में यह कमेटी मदद करेगी.

अब यह तो मेनका गांधी भी नहीं बता सकतीं कि देश में कितने मामलों की जांच करने अभी तक कितने हजार आयोग बने हैं और उनका हश्र क्या हुआ है इन आयोगों की रिपोर्टें और सिफारिशें कहां कहां धूल चाट रहीं हैं इसका हिसाब किताब किसी के पास नहीं. यह तजुरबा जरूर हर किसी के पास है कि आयोग या कमेटी बनने से मामला आया गया हो जाता है और कोई चूं भी नहीं करता.

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