मानव जाति के विकास के क्रम में नर ने मादा को सदैव अपने बाहुबल के भीतर रखा. परिवारों की संरचना के बाद और धर्म की उत्पत्ति के बाद स्त्री को अपना घर छोड़ कर पुरुष ने उसे अपने घर पर आ कर रहने के लिए मजबूर किया. विवाह द्वारा स्त्री पर आधिपत्य जमाया. सदियों तक और कुछ क्षेत्रों में तो आज भी उस को शिक्षा से दूर रख कर चूल्हेचौके व घर के कामों में ही फंसा कर रखा. स्त्री की देह, उस का मस्तिष्क पुरुष के काबू में रहे, इसलिए शादी के लिए पुरुष से कम उम्र की स्त्री का विधान धर्म द्वारा किया गया. यह पूरी दुनिया में हुआ.

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स्त्री उम्र में कम होगी तो उस को साधना आसान होगा. उम्र में छोटी स्त्री को उस को आदेश देना, मारनापीटना, गाली देना, दुत्कारना, बलपूर्वक संसर्ग करने आदि में कोई झिझक पुरुष को नहीं होती है. अपने पुरुष से उम्र में वह जितनी छोटी होगी उतना ही दब कर रहेगी. हर आज्ञा का पालन करेगी और अपनी राय कभी नहीं देगी. सदियों से ऐसा ही चलता आ रहा है. मुसलिम और बंगाली समाज में तो अपने से आधी उम्र की लड़कियों से शादी करने में कोई हिचक नहीं है.

यही वजह है कि पश्चिम बंगाल में अधिकांश औरतें जवानी की दहलीज पर पहुंचतेपहुंचते विधवा हो जाती थीं. बंगाल में विधवाओं की संख्या और पति के मरने के बाद परिवार द्वारा उन को दुत्कारने पर उन की दयनीय दशा चैतन्य महाप्रभु से देखी नहीं गई तो उन्होंने बंगाल की विधवाओं को वृंदावन का रास्ता दिखाया था. वृंदावन में उन्होंने विधवा स्त्रियों के रहने और खानेपीने का इंतजाम करवाया. मंदिरों में उन की सेवा के बदले उन के लिए अनाज की व्यवस्था शहर के कुलीन बनियों और ब्राह्मणों से करवाई.

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