आज भी कानून द्वारा थोपी जा रही पौराणिक पाबंदियों और नियमकानूनों के चलते युवतियों का जीवन दूभर है. मुश्किल तब ज्यादा खड़ी हो जाती है जब कानून बनाने वाले और लागू कराने वाले असल नेता व जज उन्हें राहत देने की जगह धर्म का पाठ पढ़ाते दिखाई देते हैं.

 

2020 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने सिंदूर और चूड़ी को ले कर एक फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नी के सिंदूर लगाने और चूड़ी पहनने से इनकार करने का मतलब है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी आगे जारी नहीं रखना चाहती है और यह तलाक दिए जाने का आधार है.

क्या है यह पूरा मामला, जानते हैं-

एक व्यक्ति जिस की शादी 2012 में हुई थी और कुछ सालों में ही पतिपत्नी अलग हो गए थे, उस ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में तलाक के लिए याचिका दाखिल करते हुए कहा कि उस की पत्नी चूड़ी, मंगलसूत्र नहीं पहनती है और न ही सिंदूर लगाती है. उस पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक निर्णय दिया और कहा कि अलग रह रही पत्नी द्वारा ‘थाली’ यानी मंगलसूत्र को हटाया जाना पति के लिए एक मानसिक क्रूरता समझा जाएगा.

यह टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने पति के तलाक की अर्जी को मंजूरी दे दी थी लेकिन महिला ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उस ने अपने गले की चेन हटाई थी, मंगलसूत्र नहीं.

वहीं, महिला की वकील ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 का हवाला देते हुए कहा था कि मंगलसूत्र पहनना आवश्यक नहीं है और इसलिए पत्नी द्वारा इसे हटाने से वैवाहिक संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए. लेकिन चीफ जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया ने पत्नी के सिंदूर लगाने से इनकार को एक साक्ष्य के तौर पर माना.

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