उन की आंखों में छोटेछोटे सपने थे. किसी को अपना घर बनाना था, किसी को बहन की शादी करनी थी, कोई अपने छोटे भाईबहनों का भविष्य संवारना चाहता था तो कोई पिता का हाथ बंटाने की चाहत में कुवैत गया था, मगर उन के नन्हेनन्हे सपने अधूरे ही रह गए. सपने देखने वाले बंद ताबूतों में अपने घर वापस लौटे हैं. कुवैत के मंगाफ शहर में हुए अग्निकांड में 49 लोगों की मौत हुई है, जिस में 45 भारतीय हैं. इस के अलावा 50 से ज्यादा लोग बुरी तरह झुलसी हालत में अस्पतालों में जीवन की जंग लड़ रहे हैं. मृतकों में सब से अधिक 24 केरल के, 5 तमिलनाडु के, 3 उत्तर प्रदेश के, 2 बिहार के और एक निवासी झारखंड का था. उत्तर प्रदेश के जिन 3 लोगों की मौत हुई है उस में गोरखपुर के दो युवक शामिल हैं. एक गुलरिया के जयराम गुप्ता और दूसरे गोरखनाथ थाना क्षेत्र के जैतपुर उत्तरी निवासी अंगद गुप्ता. जबकि तीसरा मृतक गाजीपुर का रहने वाला है.

मंगाफ की जो बहुमंजिली इमारत 12 जून 2024 की सुबह 4.30 बजे पालक झपकते लाक्षागृह में तब्दील हो गई, उस में अधिकांश लोग भारत, ख़ासकर केरल और तमिलनाडु के रहने वाले थे. हालांकि अन्य देशों नेपाल और फिलीपींस के लोग भी वहां रहते थे. कुवैत की एक निर्माण कंपनी एनबीटीसी ग्रुप ने 195 से ज्यादा श्रमिकों के रहने के लिए यह बिल्डिंग किराए पर ले रखी थी. इस बिल्डिंग में कम किराए पर बड़ी संख्या में प्रवासी लोगों को रखा जाता है. कुवैत के मीडिया के मुताबिक आग रसोई में लगी थी. चूंकि गर्मियों का मौसम है इसलिए वहां ज्यादातर मजदूर नाइट शिफ्ट में काम कर रहे हैं. कुछ मजदूर जो नाइट शिफ्ट कर के तड़के लौटे थे, वे किचन में अपने लिए खाना बना रहे थे. गर्मी के कारण वहां आग तेजी से फैलने लगी. जो लोग इमारत में मौजूद थे, वे आग पर काबू पाने की स्थिति में नहीं थे. वहां पर्याप्त पानी भी नहीं था और आग से बचाव के कोई उपकरण भी इमारत में नहीं थे. आग फैलते ही पूरी बिल्डिंग गहरे धुएं से भर गई. निकलने का रास्ता आग ने रोक लिया था और छत का रास्ता बंद था. लिहाजा अधिकांश मौतें धुएं के कारण दम घुटने से हुईं. सुबह साढ़े चार बजे का वक्त था. इमारत में अधिकतर लोग उस वक्त दिन भर की कड़ी मेहनत से थके गहरी नींद में सोए हुए थे.

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