मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत हिंदी को पूरे देश में अनिवार्य बनाने की नीयत से त्रिभाषा फार्मूले का नया ड्राफ्ट जैसे ही सामने आया, देशभर में इस का विरोध शुरू हो गया. आखिरकार मोदी सरकार को यूटर्न लेना पड़ा.

सत्ता में वापसी से अतिउत्साहित मोदी सरकार ने हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाते हुए पहला फरमान जारी किया- हिंदी अब पूरे मुल्क में पढ़ीपढ़ाई जाएगी. यह अनिवार्य भाषा होगी. इस के अलावा दूसरी भाषा इंग्लिश और तीसरी भाषा क्षेत्रीय होगी. देश में ‘त्रिभाषा फार्मूला’ लागू होगा.

केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत हिंदीभाषा को पूरे देश में लागू करने के उद्देश्य से बनाया गया नया ड्राफ्ट जैसे ही सामने आया, देशभर में इस का विरोध शुरू हो गया. विरोध के तीव्र स्वर खासतौर पर दक्षिण भारत से उठे. मजे की बात यह है कि इस मामले में अपने ही मंत्रियों का विरोध भी प्रधानमंत्री को झेलना पड़ा. हालत यह हो गई कि लोग मरनेमारने तक की बातें करने लगे.

द्रमुक के राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा ने तो केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए यहां तक कह दिया कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है. हिंदी भाषा को तमिलनाडु पर थोपने की कोशिश को यहां के लोग बरदाश्त नहीं करेंगे. हम केंद्र सरकार की ऐसी किसी भी कोशिश को रोकने, किसी भी परिणाम का सामना करने के लिए तैयार हैं.

वहीं, डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने ट्वीट कर कहा कि तमिलों के खून में हिंदी के लिए कोई जगह नहीं है. यह देश को बांटने वाला कदम होगा. यदि हमारे राज्य के लोगों पर इसे थोपने की कोशिश की गई तो डीएमके इसे रोकने के लिए युद्ध करने को भी तैयार है. नए चुने गए सांसद लोकसभा में अपनी आवाज उठाएंगे.

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