गुजरात के कच्छ में 14 जनवरी को एक बस ड्राइवर की लापरवाही से 9 युवकों की जानें चली गईं. ये सभी एक ही गांव के थे. वे रन उत्सव देखने के लिए कच्छ आए थे. सभी की उम्र 20-21 साल थी. एक युवक का तो फरवरी में विवाह होने वाला था. उन में 5 लड़के अपनेअपने मातापिता की एकलौती संतान थे. जब यह हादसा हुआ तब किसी ने उन्हें अस्पताल पहुंचाने की नहीं सोची, बल्कि लोग उन तड़पते युवकों का वीडियो जरूर बनाते रहे.

बीते साल 17 मई को इंदौर में एक सड़क हादसे में 2 युवक जिंदा जल गए लेकिन तमाशबीन लोग उन का वीडियो बनाते रहे. दोनों युवक मोटरसाइकिल पर जा रहे थे. तभी उन की टक्कर एक कार से हो गई जिस से मोटरसाइकिल में आग लग गई. हादसे के वक्त वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई, पर किसी ने आग बुझाने की या घायलों को बचाने की कोशिश नहीं की. बस, तमाशा देखते रहे और वीडियो बनाते रहे.

दिल्ली में एक ठेले वाले को स्कौर्पियो ने टक्कर मार दी. घायल अवस्था में वह व्यक्ति सड़क पर खून से लथपथ पड़ा रहा, पर किसी ने उस की मदद नहीं की. बस, खड़ेखड़े तमाशा देखते रहे. एक शख्स तो उस का मोबाइल तक उठा कर चलता बना. जब तक पुलिस आई तब तक वह दम तोड़ चुका था. कहते हैं दिल्ली है दिल वालों की. मगर डेढ़ करोड़ की आबादी वाले दिल्ली शहर में शायद ही किसी के पास दिल है.

दिल्ली में एक अन्य दुर्घटना के बाद एक युवक सड़क पर लहूलुहान पड़ा मदद की गुहार लगाता रहा, मगर कोई उस की मदद के लिए आगे नहीं आया. हजारों लोग उस के सामने से गुजरे, पर किसी का दिल उस घायल युवक को देख कर नहीं पसीजा. आश्चर्य यह कि वहां पुलिस भी खड़ी थी, पर वह भी मदद के लिए आगे नहीं आई. आखिरकार उस की मौत हो गई. आखिर, क्यों लोग इतने पत्थर दिल होते जा रहे हैं?

बीते वर्ष मुंबई में 17 साल की अनन्या को एक बाइकसवार ने टक्कर मार दी. जब तक लोग उसे पकड़ पाते, वह फरार हो गया. अनन्या वहीं सड़क पर बेहोश पड़ी रही और लोग तमाशा देखते रहे. किसी ने यह भी नहीं सोचा कि कम से कम ऐंबुलैंस बुला दे, ताकि बच्ची की जान बच सके. इतना ही नहीं, किसी शख्स ने उस बेचारी बच्ची का मोबाइल तक चुरा लिया. खैर, एक मांबेटी ने उस की मदद की और उसे अस्पताल पहुंचाया, आखिर उस की जान बच गई.

यह देख कर बड़ी कोफ्त होती है कि हम कैसे देश में जी रहे हैं, जहां एक इंसान के दिल में दूसरे इंसान के लिए हमदर्दी नहीं है. ऐसे मौके पर मदद करने के बजाय लोग फोन चुरा कर भाग जाते हैं. उसी फोन से वह घायल की मदद कर सकता था. पर नहीं, फोन चुराना उसे ज्यादा सही लगा.

सोशल मीडिया पर अकसर ऐसे वीडियो वायरल होते रहते हैं. एक वीडियो में एक आदमी गरीब बच्चों को खाना, पानी की बोतल और टिशू पेपर बांट रहा है, तो कहीं एक अन्य वीडियो में कुछ आदमी एक औरत को डायन बता कर पीट रहे हैं और कोई उस का वीडियो बना रहा है. एक अन्य घटना में 2 लड़कियां बीच सड़क पर लड़ रही हैं, एकदूसरे के बाल खींच रही हैं और कोई उन का वीडियो बना रहा है.

मानवता के लिए

हमारे देश में काफी ज्यादा सड़क हादसे होते हैं और उन में लोगों की मौतें भी बहुत ज्यादा होती हैं. अफसोस इस बात का है कि ऐसे हादसों के दौरान लोगों की भीड़ तो जमा हो जाती है पर मदद के लिए कोई आगे नहीं आता.

सड़क पर कोई दुर्घटना हो या फिर राह में किसी महिला के साथ होने वाली कोई अनहोनी घटना या फिर पद के नशे में चूर किसी पुलिस वाले का किसी शरीफ इंसान का धकियाना, लोगों को इन बातों से कोई मतलब नहीं. मतलब तो उन्हें बस वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डालने से होता है. आखिर, क्यों लोग घायलों की मदद करने से कतराते हैं?

दरअसल, लोग पुलिस की झंझटों से बचना चाहते हैं. नोएडा में एक ऐसा ही वाकेआ हुआ. एक शख्स ने जब एक घायल आदमी को अस्पताल पहुंचाया तो पुलिस ने उसे ही पकड़ कर जेल में बंद कर दिया. पुलिस ने उस शख्स को ही गलत ठहराया, लेकिन जब सचाई सामने आई तो उसे छोड़ भी दिया. वह शख्स पूरी रात लौकअप में बंद रहा. यह तो पुलिस की लापरवाही है कि उस ने बिना जाने ही एक शरीफ व मददगार इंसान को जेल में बंद कर दिया. लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि हम घायल की मदद न करने की ठान लें?

यह कहना गलत नहीं होगा कि आज लोगों की संवेदनाएं मरती जा रही हैं. लोग समाज के सभ्य नागरिक कहलाना तो पसंद करते हैं पर समाज के लिए कुछ करना नहीं चाहते. किसी को सड़क पर लहूलुहान और तड़पता देख लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन अगर वही सब सोशल मीडिया पर देखते हैं तो लाइक करने से खुद को रोक नहीं पाते, जैसे घायलों से उन्हें कितनी हमदर्दी है.

इस मुद्दे पर मनोचिकित्सक डा. शिवि जग्गी का कहना है, ‘‘लोगों में वीडियो बनाने का जो क्रेज है उसे सोशल मीडिया का इफैक्ट कहा जा सकता है. सोशल मीडिया का दखल आज हमारे जीवन में इतना ज्यादा बढ़ गया है कि हम पलपल की जानकारी इंटरनैट पर अपडेट करते रहते हैं. कुछ मामलों में इसे एक एडिक्शन कहा जा सकता है.

‘‘विदेशों में पब्लिक की मदद के लिए हैल्पलाइन नंबर होता है जहां फोन करने पर जल्द ही मदद मिल जाती है, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं है. यहां अलगअलग सेवाओं के लिए अलगअलग नंबर होते हैं. जिन्हें याद रखना मुश्किल है और घबराहट में तो वैसे भी इंसान का दिमाग काम करना बंद कर देता है.’’

सामाजिक फर्ज भी निभाएं

भले ही कभी किसी घायल की मदद न की हो, उसे देख कर मुंह मोड़ लिया हो, पर जब वही सब सोशल मीडिया पर दिखाया जाता है, तो उसे बारबार देखते हैं. दोस्तों के साथ बैठ कर चर्चा भी करते हैं. दिखाते हैं कि उन्हें भी देशदुनिया की कितनी जानकारी है. पर जरा दिल से सोचिए, कहीं किसी रोज आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हो गया और लोग आप की मदद को आगे न आए तो?

दुर्घटना कब, किस के साथ और कहां हो जाए, कहा नहीं जा सकता. सिर्फ वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर देने से या देख कर लाइक कर देने से या फिर दोस्तों के साथ बैठ कर उस पर चर्चा करने से आप का फर्ज पूरा नहीं हो जाता.

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार, जब कोई ऐक्सिडैंट होता है, तो हम उसे देखने में बहुत रुचि दिखाते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि जरूर ड्राइवर तेज गति से गाड़ी चला रहा होगा. हम तो इतनी तेज गाड़ी नहीं चलाते, इसलिए हमारे साथ ऐसा हादसा नहीं हो सकता.

एक पड़ताल के अनुसार, अगर हादसे में घायल व्यक्ति को शुरुआती 20-30 मिनट के भीतर उपचार मिल जाता है, तो उस की जान बचाई जा सकती है. इस तरह से साल में करीब 30-40 फीसदी लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है. सरकार को ऐसी स्कीम बनानी चाहिए जिस में गाड़ीचालक के लिए फर्स्ट एड कोर्स अनिवार्य किया जाए ताकि जरूरत के वक्त वह किसी की मदद कर सके, साथ ही, आम जनता को हादसे में घायल की मदद के प्रति जागरूक करने के लिए कैंप लगाने चाहिए, ताकि वह सोशल मीडिया के बजाय व्यक्ति की जान को ज्यादा तवज्जुह दे.

जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह वीडियो बनाने को भी पूरी तरह से गलत नहीं ठहरा सकते. इस से पता चलता है कि लोग जागरूक हैं और वक्त पड़ने पर वह वीडियो सुबूत के तौर पर काम भी आ सकता है. पर जागरूकता का यह मतलब नहीं है कि सिर्फ वीडियो बनाते रहें और घायल को तड़पता देखते रहें.

कमाई भी, शोहरत भी

आज गाना, डांस, कुकिंग और जाने क्याक्या वीडियो बना कर लोग इंटरनैट पर अपलोड करते हैं और उस से नाम, शोहरत और पैसे भी खूब कमा रहे हैं. इंटरनैट पर वीडियो बना कर डालना एक फैशन बन गया है और शौक भी. बिना लागत लगाए, कमाई का यह अच्छा जरिया है.

भारत में हर महीने 20 हजार यूट्यूब चैनल द्वारा 3 लाख से ज्यादा वीडियो अपलोड किए जाते हैं और एक लाख से ज्यादा नए सब्सक्राइबर बनते हैं. आज यूट्यूब पर कमाई कर के कितने ही लोग लखपति बन गए हैं.

हाल ही में चर्चा में आई प्रिया प्रकाश वरियर एक मलयालम अभिनेत्री हैं. वे रातोंरात सोशल मीडिया पर छा गईं. इन की प्रसिद्धि की वजह एक मलयाली फिल्म में एक गीत की 10 सैकंड की क्लिप है जो सोशल मीडिया पर खूब चली और वे लोकप्रिय हो गईं. प्रिया प्रकाश अपने गाने से सोशल मीडिया पर वायरल हुईं. फिलहाल, प्रिया के इंस्टाग्राम पर करीब 10 लाख फौलोअर्स हैं. अपनी फौलोअर्स की लगातार बढ़ती तादाद और लोकप्रियता के चलते प्रिया को हर सोशल मीडिया पोस्ट के बदले 8 लाख रुपए मिल रहे हैं.

भुवन बाम एक यूट्यूबर हैं. इन के यूट्यूब का नाम बीबी की वाइन्स है, जो अपनी कौमैडी के लिए प्रसिद्ध है. भुवन बाम की वीडियोज ज्यादातर भारत में देखी जाती हैं. इन की यूट्यूब की एक महीने की कमाई 7 लाख 75 हजार रुपए है और सालाना कमाई करीब 80 लाख रुपए है. ऐसे और कई जानेमाने लोग हैं जो यूट्यूब से खूब कमाई कर रहे हैं. इन में टैक्निकल गुरु गौरव चौधरी, आध्यात्मिक गुरु संदीप माहेश्वरी, पम्मी आंटी वगैरह शामिल हैं. यहां तक कि रामदेव के भी छोटेछोटे वीडियो देखे जा सकते हैं. ये सकारात्मक वीडियो हैं जिन से लोग प्रभावित तो होते ही हैं, साथ में कुछ अच्छा भी सीखते हैं.

हाल ही में नार्वे में एक घटना घटी जो काफी चर्चा में रही. वहां बच्चों के एक ग्रुप ने इंटरनैट पर एक आपत्तिजनक वीडियो शेयर कर दिया जो देश की सुरक्षा के लिए खतरा था. हालांकि फिर वह वीडियो डिलीट कर दिया गया और उन बच्चों को ढूंढ़ कर जांच भी बैठाई गई.

एक अध्ययन के अनुसार, सोशल मीडिया का उपयोग युवा और वयस्क लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. कुछ पोस्ट की गई सामग्री या कंटैंट सही होता है और कुछ ऐसा होता है जो ठीक नहीं है. फ्लाईमाउथ विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक शोध से यह बात सामने आई है कि युवा और वयस्क सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री पोस्ट करते हैं जिन में यौन या अप्रिय सामग्री शामिल होती है.

आने वाले समय में इंटरनैट और क्याक्या गुल खिलाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा. हमें अपनी पीढ़ी को इंटरनैट के सही इस्तेमाल के बारे में बताना बहुत जरूरी है. हम सभी को चाहिए कि इंटरनैट, मोबाइल और नई तकनीक का इस्तेमाल समाज के हित के लिए करें, सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं. वीडियो बनाने के साथ हमें मानवीय जिम्मेदारी को भी निभाना चाहिए ताकि समाज में मानवता कायम रहे.

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