हेट क्राइम कम होने का नाम नहीं ले रहा. दुनिया भर में धार्मिक अपराध के आंकड़े बढते जा रहे हैं. धार्मिक पूर्वाग्रह के चलते एक और भारतीय सिख को अमेरिका में बुरी तरह पीट दिया गया. अमेरिका के औरिगन में एक स्टोर पर काम करने वाले हरविंदर सिंह डोड पर 24 वर्षीय एंड्रयू रैमजे ने हमला कर दिया. हरविंदर सिंह की दाढी नोच ली, मुंह पर मुक्के मारे और नीचे गिरा कर लातों से पीटा. उस की पगड़ी उतार कर फेंक दी.
एंड्रयू सिगरेट के रोलिंग पेपर खरीदने आया था पर उस के पास पहचान पत्र नहीं था. हरविंदर सिंह ने उसे बिना पहचान पत्र के जाने को कह दिया. इस पर रैमजे ने उसे मारनापीटना शुरू कर दिया.
एंड्रयू पर हेट क्राइम का मामला दर्ज किया गया है. अदालत में दायर दस्तावेजों के अनुसार श्वेत एंड्रयू के मन में हरविंदर के धर्म को ले कर पूर्वाग्रह थे जिस के चलते उस ने उस पर हमला किया गया. इस से पहले अगस्त 2018 में भी दो सिखों पर हमला किया गया था.
दुनिया भर में धार्मिक, नस्लीय अपराध बढ़ रहे हैं. फेडरल ब्यूरो औफ इंवेस्टिगेशन के अनुसार आरेगन में 2016 से 2017 के दौरान 40 प्रतिशत घृणा अपराध बढ़े हैं. 2017 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि इस वर्ष 7,175 धार्मिक, नस्लीय भेदभावपूर्ण हिंसा के मामले दर्ज किए गए. इन में 8,493 लोगों को शिकार बनाया गया.
2016 में 6,121 हेट क्राइम के मामले दर्ज हुए. 2015 में 5,850 केस दर्ज किए गए. यानी हर साल यह अपराध बढ़ रहा है. इन में धार्मिक, नस्लीय, लैंगिक, समलैंगिकों के साथ हिंसा के अपराध भी शामिल हैं.
नेशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे के मुताबिक 2005 से 2015 के बीच 2,50,000 घृणा के मामले हुए. इन के अलावा ऐसे कितने ही मामले हिंसा के भय और मामला उजागर होने के डर से दर्ज ही नहीं कराए गए.
अमेरिका में घृणा अपराध का पुराना इतिहास रहा है. 200 साल पहले अश्वेतों को श्वेतों की नफरत का शिकार होना पड़ा था. अफ्रीकीअमेरिकनों के साथ दोयम दर्ज का व्यहार किया जाता था. यह उसी तरह था जैसे भारत में वर्णव्यवस्था के चलते दलितों, शूद्रों के साथ हुआ.
1950 और 1960 के दशक के दौरान अश्वेतों के खिलाफ हिंसा आम थी. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने नागरिक अधिकार आंदोलन शुरू किया. उन्होंने समानता के अधिकार के लिए कड़ा संघर्ष किया. अश्वेतों को वोट के अधिकार के साथ दूसरे समानता के अधिकार मिलने शुरू हुए.
असल में भारतीय लोग विदेशों में धर्म की गठरी अपने साथ ले कर गए. वे वहां अपनी अलग धार्मिक पहचान बना कर रखते हैं. इन लोगों ने वहां अपने अलग धर्मस्थल बना लिए. अलग धार्मिक पहचान रखनी शुरू कर दी. हिंदू लोग भले ही सूटटाई लगाते हों पर कई ऐसे हैं जो चोटी, तिलक लगाने में शर्म महसूस नहीं करते. सिख तो दाढी और पगड़ी पहनते ही हैं.
ये लोग अपने धर्म, अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं और इस का सार्वजनिक तौर भी इजहार करने से भी नहीं चूकते. बस यही धार्मिक पहचान दूसरे धर्म, संस्कृति वाले लोगों के मन में घृणा के भाव जगाती है.
मूल विदेशियों के मन में इन्हें अलग रखने के विचार उस वक्त और मजबूत बनते हैं जब ये लोग उन के सांस्कृतिक, धार्मिक कार्यक्रमों में खुद को शामिल नहीं करते. खुद के धर्म को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने की चेष्ठा करते हैं.
हर धर्म अपने अनुयायियों की अलग पहचान बना कर रखता है. बिना धार्मिक पहचान के कई रूप हैं. नाम, पहनावा, धार्मिक चिन्ह धारण कर के रखना जैसे विविध तरीके हैं. मुस्लिम जालीदार टोपी और दाढी, ईसाई गले में क्रास लटका कर रखते हैं. यह सब स्वार्थी लोगों द्वारा अपनीअपनी धार्मिक दुकानदारी चलाने के लिए होता है.
हेट क्राइम लोगों की धार्मिक, नस्लीय पहचान की वजह से होते हैं. आंकड़े इस बात के गवाह हैं. नेशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे के अनुसार 60 प्रतिशत मामलों में नस्लीय, धार्मिक पहचान बनाए रखने वाले लोग हिंसा के शिकार हुए.
धार्मिक पहचान समाज को विभाजित करती है. लोग जिस देश में रहते हैं उस के अनुरूप बगैर धार्मिक पहचान के क्यों नहीं रह सकते. अगर हरविंदर सिंह दाढी और पगड़ी नहीं पहने होते तो निश्चित ही उस पर हमला नहीं होता. यह अलग धार्मिक पहचान ही नफरत का कारण बन रही है.