केरल के विवादित सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली कनकदुर्गा अब घर, परिवार और समाज की प्रताड़ना का शिकार हो रही है. कनकदुर्गा के लिए सभी ने अपनेअपने दरवाजे बंद कर लिए हैं. उसे पति ने घर से निकाल दिया है. भाई ने कहा है कि उन्होंने भी बहन से रिश्तानाता तोड़ लिया है. इस से पहले कनकदुर्गा मंदिर प्रवेश के बाद जब घर पहुंची थीं तो सास ने उसे मारापीटा. उसे अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा.

मंदिर प्रवेश के ‘पाप’ में 39 वर्षीय दो बच्चों की मां कनकदुर्गा अब ससुराल, पीहर और समाज से बहिष्कृत हो कर दरबदर हो गई है. वह पुलिस की सुरक्षा में सरकारी शेल्टर होम में रह रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कनकदुर्गा को फुल टाइम सुरक्षा देने का पुलिस को आदेश दिया है.

सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की पाबंदी थी पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 सितंबर को सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश के पक्ष में फैसला सुनाया था.

अदालत से महिलाओं को प्रवेश की इजाजत मिलने के बाद तमाम हिंदू संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया था. इन विरोधों के बावजूद 2 जनवरी को कनकदुर्गा ने बिंदु नामक महिला के साथ सबरीमाला मंदिर में प्रवेश किया था. दोनों महिलाओं के प्रवेश के बाद केरल में भारी हिंसा और विरोध प्रदर्शन हुए.

इन विरोधों के चलते सुरक्षा की दृष्टि से कनकदुर्गा दो सप्ताह तक छुपी रहीं. 15 जनवरी को घर पहुंचीं तो अपने ससुराल वालों से बहस हुई. ससुराल वालों ने उस के मंदिर प्रवेश का विरोध किया और सास ने उसे पीट दिया. जख्मी हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. अस्पताल से छुट्टी के बाद वह घर पहुंचीं तो सास और पति दोनों बच्चों को ले कर घर पर ताला लगा कर चले गए.

घर के दरवाजे बंद देख कर वह पीहर की दहलीज पर पहुंचीं तो भाई भरत ने घर में घुसने से इनकार कर दिया. भार्ई ने कहा कि उस का अब बहन से कोई रिश्ता नहीं है.

परिवार वालों ने कहा है कनकदुर्गा ने समूचे समाज में बेइज्जती करा दी. मंदिर परंपरा को तोड़ दिया. उसे मंदिर प्रवेश के पाप का प्रायश्चित करना होगा. हिंदू समुदाय और अयप्पा के भक्तों से माफी मांगनी होगी.

धर्म, मंदिर के चक्कर में घर उजाड़ चुकी कनकदुर्गा का के साथ इस तरह का व्यवहार कोई ताज्जुब की बात नहीं है. स्त्री कभी स्वतंत्र नहीं रही. उसे स्वतंत्र फैसले करने का कोई अधिकार नहीं रहा. वह सदियों से धर्म की गुलाम बना कर रखी गई. इस बात की धर्म की किताबें गवाह हैं. सीता को न केवल अग्निपरीक्षा देनी पड़ी, गर्भावस्था में पति राम द्वारा घर से निकाल दिया गया था. औरों के कहने पर तरहतरह के तानें दे कर घरपरिवार से जुदा कर दिया गया. आखिर उसे धरती के अंदर समा जाना पड़ा.

नारी को ले कर भारतीय संस्कृति की महानता के खूब गीत गाए गए हैं. नारी पूजन की संस्कृति का गुणगान भरा पड़ा है. धार्मिक प्रवचनों में, पन्नों में नारी सम्मान पर बड़ीबड़ी बातें कही गई हैं. भारतीय संस्कृति में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता’ जैसे कई जुमले हैं पर असल व्यवहार में नारी आज भी नरक का द्वार, पाप की गठरी और पैर की जूती ही समझी जाती हैं.

कनकदुर्गा के साथ यह बर्ताव नारी को उस की हद में रहने की चेतावनी है. यह बताता है कि स्त्री आज भी स्वतंत्र नहीं है. उसे पति, परिवार, समाज जो कहे, उसी के अनुसार  करना है. वह अपनी मर्जी की मालकिन कभी नहीं हो सकती.

कनकदुर्गा जिस धर्म, जिस मंदिर प्रवेश के लिए जिद कर रही थी, वही उस की दशा के जिम्मेदार है. वह क्यों धर्म के उस दलदल की ओर जा रही हैं जिस में पड़ी रह कर सैंकड़ों सालों से स्त्री कराहती आई है. सदियों पुरानी जिस धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था ने उस जैसी औरतों को गुलाम, बंदी, दासी बना रखा है वह मंदिर प्रवेश उसी सड़ीगली व्यवस्था का ही एक द्वार है.

कनकदुर्गा समाज की नजर में तुम नरक का द्वार हो. उस के लिए नारी की मुक्ति का द्वार केवल पुरुष की सेवा करना है. धर्म जो कहे उसी के अनुरूप उसे चलना है. उस रास्ते से डिगी कि समाज, परिवार निगल लेगा. धर्म ने तुम्हारे लिए जो लक्ष्मण रेखा खींच रखी हैं, उसी की जद में रहो. अपनी औकात से बाहर निकलोगी तो कनकदुर्गा बना दी जाओगी.

कनकदुर्गा, तुम्हारा कल्याण मंदिर प्रवेश से नहीं, धर्म के दलदल से बाहर निकलने से होगा. धर्म तो स्त्री की तरक्की में बेड़िया हैं. धर्म की बेड़ियों को ओढ़ने का नहीं, तोड़ने का साहस करो, कनकदुर्गा. यही स्त्री का असली मुक्ति द्वार है.

नोट : कितनी महिलाएं कनकदुर्गा के साथ हैं? कमेंट बौक्स में कमेंट कर हमें बताएं.

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