18 जुलाई, 2018 की बात है. रात के करीब 11 बजने वाले थे. रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता ने कुछ देर पहले ही रात का भोजन किया था. इस के बाद कुछ देर टीवी देखा और ड्राइंग रूम में बैठ कर पत्नी चंद्रकांता से इधरउधर की बातें कीं. गुप्ता और उन की पत्नी जब घरपरिवार की बातें कर रहे थे तो उन की 10 महीने की पोती नितारा दादी की गोद में ही सो गई थी. इस बीच नौकरानी प्रिया ने भोजन के बरतन वगैरह साफ कर लिए थे.

अब कोई काम भी नहीं था. कृष्णकांत गुप्ता को नींद आने लगी तो उन्होंने पत्नी चंद्रकांता से कहा, ‘‘मैं तो सोने जा रहा हूं. तुम भी दिन भर की थकी हुई हो, अब सो जाओ और नितारा को भी अपनी गोद से बिस्तर पर लिटा दो.’’

‘‘हां, मैं भी थक गई हूं, अपने कमरे में जा कर सोती हूं.’’ चंद्रकांता ने कहा.

कृष्णकांत गुप्ता ड्राइंग रूम से उठ कर अपने कमरे में जाने लगे तो उन्हें अपने मकान के पोर्च में कुछ हलचल सी महसूस हुई. उन्होंने गेट खोल कर देखा तो 3 अनजान लोग घर के अंदर खड़े मिले. उन्होंने उन लोगों से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कौन हो और यहां क्यों खड़े हो?’’

कृष्णकांत गुप्ता के सवालों से घबरा कर वे तीनों आदमी सौरी बोलते हुए यह कह कर वहां से चले गए कि रात के अंधेरे में हम गलती से रामदेव का घर समझ कर आप के घर के अंदर आ गए. हमें रामदेव के घर जाना है. वे तीनों अनजान आदमी भले ही वहां से चले गए. लेकिन गुप्ताजी के मन में कई तरह की शंकाएं उठने लगीं.

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