यह किसी आजाद देश और नरेंद्र मोदी के शासनकाल में ही संभव है कि कोई गेरुआ वस्त्र धारी बाबा मानवीय संकट के समय रातोंरात ‘कोरोनिल’ नामक कोविड-19 महामारी के दौरान दवाई ले आता है और बड़ेबड़े दावे करने लगता है, और देश का स्वास्थ्य मंत्रालय मौन रहता है. आंखों पर पट्टी बांध कर लूटने की छूट दी जाती है. विज्ञापन प्रकाशित होते हैं मगर इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया जाता. क्या सिर्फ नरेंद्र मोदी की सत्ता में दबाव, प्रभाव, और संपर्क के कारण पूरी व्यवस्था रामदेव के इस कृत्य को देखते रह गई जिस में उन्होंने स्वयं बताया था कि कोरोनिल बेच कर उन्होंने करोड़ों रुपए कमाए हैं.

इस घटनाक्रम को ध्यान से देखने वाले समझ सकते हैं कि देश में कानून और व्यवस्था नाम की चीज़ कितनी है. और बाबा रामदेव जैसे लोगों को मौका मिलता है तो वह रुपये के कारण कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं और दोनों हाथों से लूटते हैं. ये देश की जनता को बेवकूफ बनाने का काम करते हैं और मजे की बात यह है कि गेरुआ कपड़ा पहन कर अपने आप को ‘बाबा’ घोषित कर संसार में इज्ज़त भी पाते रहते हैं. अब जब न्यायालय ने इस सब को संज्ञान लिया है तो लगभग 3 साल बाद रामदेव के गले में मानो घंटी बंध गई है.

कौन बाधेगा गले में घंटी?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने योग गुरु रामदेव को कोविड-19 के इलाज के लिए 'कोरोनिल' के इस्तेमाल से संबंधित कुछ आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट हटाने का निर्देश दिया है. न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि वह रामदेव के खिलाफ चिकित्सकों के कई संघों द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर रहे हैं. न्यायाधीश ने कहा कि कुछ आपत्तिजनक पोस्ट और सामग्री को हटाने के निर्देश दिए जाते हैं.

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