तमिलनाडु की कपास घाटी कहे जाने वाले कई जिलों में गरीब, दलित और आदिवासी लड़कियों से पढ़ाई के नाम पर कपड़ा मिलों में मजदूरी कराई जा रही है. इन लड़कियों का 10वीं और 12वीं कक्षाओं में नामांकन करा कर इन्हें मिलों में स्थित होस्टलों में रखा जाता है और उन से मिल में काम लिया जा रहा है.

सितंबर में सलेम जिले के न्यू बसस्टैंड पर एक बस से करीब एक दर्जन लड़कियां उतरीं तो चाइल्डलाइन के एंटी टै्रफिकिंग दस्ते ने उन्हें रोका और बाल कल्याण समिति के सामने पेश कर जब उन से पूछताछ की गई तो इस बात का खुलासा हुआ कि इन लड़कियों को पढ़ाई के नाम पर कपड़ा मिलों में रख कर इन से मजदूरी कराई जा रही है. शुरुआती जांच में लड़कियों ने बताया कि वे कोयंबटूर की एक कपड़ा मिल में 10वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ रही हैं.

कपड़ा मिल में पढ़ाई की बात सुन कर कल्याण समिति के अध्यक्ष ने जब पूछताछ की तो मालूम हुआ कि वे वास्तव में कपड़ा मिल में काम कर रही हैं और गैरकामकाजी समय में मिल के छात्रावास में पढ़ाई कर रही हैं. अब वार्षिक छुट्टियों में अपने घर जा रही हैं.

दरअसल, पश्चिमी तमिलनाडु के कोयंबटूर, सलेम, तिरुपुर, करूर, इरोड, नमक्कल, डिंडुगल जिलों को कौटन वैली यानी कपास घाटी कहा जाता है. इन जिलों की कपास कपड़ा मिलों में मुख्यरूप से गरीब, अशिक्षित, दलित, आदिवासी लड़कियों को एजेंटों के माध्यम से रोजगार के लिए लाया जाता है.

लेबर सप्लाई का खेल

यह स्थिति उसी तरह की है जैसे दिल्ली व अन्य शहरों के लिए झारखंड जैसे राज्यों से कामवाली के तौर पर लड़कियां दलालों द्वारा सप्लाई की जाती हैं.

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