Coaching Institutes : ज्यादातर मातापिताओं को लगता है कि अगर किसी अच्छे कोचिंग में बच्चों को दाखिला दिला दिया तो टौप कालेज मिल जाएगा और फ्यूचर सिक्योर हो जाएगा. लेकिन सवाल यह है कि आखिर स्कूलकालेजों की पढ़ाई ऐसी क्यों नहीं होती कि स्टूडैंट्स को कोचिंग का सहारा लेना ही न पड़े?

"वे तुम्हें सबकुछ फ्री में देंगे लेकिन शिक्षा नहीं देंगे क्योंकि वे जानते हैं कि शिक्षा ही सवालों को जन्म देती है."

बाबासाहेब अंबेडकर के इस कथन में सरकार की मंशा का सार छिपा है. हम विश्व की सब से बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली होने का दावा करते हैं, परंतु वास्तविकता यह है कि अधिकतर छात्रों को मनपसंद कालेज या कोर्स में एडमिशन नहीं मिल पाता है. कालेज में सीटें कम हैं और अभ्यर्थियों की संख्या अधिक, एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति में कोचिंग सैंटरों ने कमान संभाली और समय के साथ यह हर छात्र की जरूरत व मातापिता के लिए जी का जंजाल बन गए.

आज के समय में 9वीं कक्षा से ही आईआईटी और नीट के लिए कोर्स शुरू हो जाते हैं. कोचिंग संस्थानों में बच्चों के एक साल रहने का खर्चा लगभग 2-3 लाख रुपए के आसपास आता है. कोचिंग संस्थानों की फीस भी एक से डेढ़ लाख रुपया वार्षिक होती है. इस के अलावा दूसरे भी तमाम खर्च होते हैं. पिछले दोतीन दशकों में कोचिंग के क्षेत्र में उबाल आया है.

इन कोचिंग संस्थानों के तले अनगिनत मातापिता के ख्वाब पलते हैं क्योंकि ख्वाब बच्चों के नहीं बल्कि मातापिता के होते हैं, जिन्हें अंजाम तक पहुंचाने का माध्यम बच्चे होते हैं. कोई जमीन बेच, कोई घर बेच कर बच्चों को कोचिंग में भेज रहा है लेकिन परिणाम क्या?

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