अपने नौकरों की तुलना में पांच फीट और चंद सेंटीमीटर के राजा सिंह चौहान छोटी कद काठी के हैं. वो हमेशा तीन चार लोगों से घिरे रहते हैं. चौहान ग्वालियर में सरकारी पैसों से एक कौशल विकास केन्द्र चलाते हैं. आज वो भगवा कुर्ते पैजामे में इस केन्द्र के बाहर घास पर रखी एक मेज पर बैठे हैं. मैंने उनसे कोई डेढ़ घंटा बातचीत की और इस दौरान लोग लगातार मिलने आते रहे. मिलने वाले सभी स्थानीय मर्द थे. कुछ लोग उनसे राम राम करने आए थे और कुछ लोग सलाह मशवरे के लिए. एक आदमी उन्हें अपने जन्मदिन की पार्टी में बुलाने आया था. हर मुलाकात से पहले चौहान का निजी सचिव आने वाले की जाति का उल्लेख कर पहचान करा रहा था. वो कहता था, “ये शर्मा जी हैं”, पंडित”, “ये अपने तोमर का लड़का है”. हर आगंतुक पहले झुक कर चौहान के पैर छूता और फिर बोलने या बैठने के लिए चौहान की आज्ञा की प्रतीक्षा करता.

राजा राजपूत जात के रसूखदार चौहान समुदाय के हैं. फिलहाल वो किसी हीरो से कम नहीं हैं. 2 अप्रैल के भारत बंद के समय राजा चौहान राष्ट्रीय समाचारपत्रों की सुर्खियों में थे. उस दिन देश भर में दलितों ने सर्वोच्च अदालत के मार्च महीने में दिए फैसले के खिलाफ आंदोलन किया था. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम को कमजोर करने वाले अपने फैसला में इस कानून के तत्काल गिरफ्तारी वाले प्रावधान को हटा दिया था. इसके बाद बिना किसी राजनीतिक दल की अगुवाई में देश भर के दलितों ने व्यापक प्रदर्शन किया. बहुत सी जगहों पर प्रदर्शनकारी दलित पुलिस भिड़ गए और अन्य कई जगह सवर्णों के विरोध प्रदर्शनों से उनका आमना-सामना हुआ. सवर्णों की भीड़ ने आंदोलनकारियों पर पथराव किया, उन पर लाठियों से हमला किया और गोलियां चलाई. देश भर में पुलिस और सवर्णों की गोलीबारी में कम से कम 9 दलितों की मौत हो गई. उनमें से तीन मौतें अकेले ग्वालियर में हुईं और चार की मौत मध्य प्रदेश के ही भिंड में हुई.

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