समय बदल गया, लोकतंत्र के रूप में स्वतंत्र भारत के उदय होने के साथ ही सत्ता पर कब्जा पाने के लिए तिकड़मी नेताओं ने राजनीति की नई बिसात बिछा कर देश में छलकपट का खेल शुरू कर दिया था. फर्क सिर्फ इतना रहा कि सत्ता को हासिल करने के लिए छलकपट करने वाले चेहरे और कथानक बदल गए. आज की राजनीति के दौर में धार्मिक उन्माद भरना और अपराधियों का जातीयकरण कर के उन्हें राजनैतिक संरक्षण देना आज के नेताओं की राजनीति का प्रमुख हिस्सा बन गया है. देश में साफसुथरी राजनैतिक मूल्यों के आधार पर आज राजनीति करने वाले नेता कम ही रहे हैं.

राजनीति के शिखर पर पहुंचने की जल्दी में राजनीति का माफियाकरण हो गया है. देश में बिहार के धनबाद जिले से कोयला माफिया के रूप में बाहुबली नेताओं के राजनीति में आने की शुरुआत हुई थी, जो धीरेधीरे पूरे देश में फैल गई. उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में भी बाहुबली अपराधियों ने चुनाव लड़ कर राजनीति में भागीदारी हासिल कर ली.

पहले जहां नेता अपराधियों का इस्तेमाल कर के चुनाव जीतते थे, अब अपराधी खुद ही बाहुबल, धनबल से चुनाव जीत कर सांसद और विधायक बनने लगे हैं. राजनेताओं द्वारा भष्मासुर अपराधी पैदा करने की रीति राजस्थान के नेताओं में कम ही रही है.

अन्य राज्यों की अपेक्षा शांत माने जाने वाले राजस्थान में भी इधर नेताओं ने अपना हित साधने के लिए अपनीअपनी जाति के अपराधियों को संरक्षण देना शुरू कर दिया है. राजस्थान की जाट जाति मूलरूप से खेतीकिसानी करने वाली जाति मानी जाती है, जबकि राजपूत शासक और सामंत रहे हैं, जिस की वजह से जाट जाति राजपूतों की दबंगई का शिकार बनती रही है.

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