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लेखिका-Meha gupta

इसी दरमियान मेरी मुलाक़ात अमित से हो गई . हमारी स्कूल में कन्सट्रक्शन का काम चल रहा था वह सिविल इन्जिनियर था . इसी सिलसिले में अक्सर उसका हॉस्टल आना होता था . उसने आज तक कसकर बंद किए मेरे दिल के झरोखों को खोलकर उसके एक कोने में अपने लिए कब जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला .
" क्या आप मेरे साथ कॉफ़ी शॉप चलेंगी ?" वीकेंड पर वह अक्सर मुझसे पूछता . उसकी आँखों में मासूम सा अनुनय होता जिसे मैं ठुकरा नहीं पाती थी . हम दोनों एक - दूसरे के साथ होते हुए भी अकेले ही होते क्योंकि उस समय भी मैं ख़ुद में ही सिमटी होती बिल्कूल ख़ामोश .. कभी टेबल पर अंगुली से आड़ी - टेडी लकीरें खींचते हुए तो कभी मेन्यू कार्ड में पढ़ने की असफल कोशिश करते हुए .
"तुम अमित से शादी कर लो ,अच्छा लड़का हैं तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा ." एक शाम सिस्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा . सारी रात मैं सो नहीं पाई थी . बाहर तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी और एक तूफ़ान सारी रात मेरे मन के भीतर भी घुमड़ता रहा था . मैंने सुबह होते ही अमित को वॉट्सैप कर दिया ," मैं धीमी , मंथर गति से चलती सिमटी हुई सी नदी के समान हूँ और तुम अलमस्त बहते वो दरिया जिसका अनंत विस्तार हैं . हम दोनों बिलकुल अलग है . तुम मेरे साथ ख़ुश नहीं रह पाओगे . "
" नदी की तो नियति ही दरिया में मिल जाना है और दरिया का धर्म है नदी को अपने में समाहित कर लेना . बस तुम्हारी हाँ की ज़रूरत है बाक़ी सब मेरे ऊपर छोड़ दो ." तुरंत अमित का मैसेज आया . जैसे वो मेरे मेसिज का ही इंतज़ार कर रहा था . मम्मा पापा को भी इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था . सादगीपूर्ण तरीक़े से हमारी शादी करवा दी गई .
मे के महीने में गरमी और क्रिकेट फ़ीवर अपने शबाब पर थे . अमित सोफ़े पर औंधे लेटे हुए चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडीयंज़ की मैच का मज़ा ले रहे थे . इतने में मोबाइल बजने लगा . रंग में भंग पड़ जाने से अमित ने कुछ झुँझलाते हुए कुशन के नीचे दबा फ़ोन निकाला पर मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए और वह बात करने दूसरे रूम में चला गया . मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना ज़रूरी फ़ोन किसका है कि वो धोनी की बैटिंग छोड़कर दूसरे बात करने चला गया वो भी अकेले में .
“ किसका फ़ोन था ?” उसके आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा .
“ ऐसे ही .. बिन ज़रूरी फ़ोन था .” संक्षिप्त सा उत्तर दे वो फिर से टीवी में मगन हो गया . मैंने फ़ोन उठाकर रीसेंट कॉल्ज़ लिस्ट देखी , उस पर मनन नाम लिखा हुआ था . स्क्रीन पर कई सारे अन्सीन वॉट्सैप मेसजेज़ भी थे . मैंने वाँट्सैप अकाउंट खोला वो सब मेसजेज़ ‘ पार्टी परिंदे ग्रूप ‘ पर थे . मुझे बड़ा रोचक नाम लगा .
“ अमित ये पार्टी परिंदे क्या है ? “
“ कुछ नही .. हमारा फ़्रेंड्ज़ ग्रूप है जो वीकेंड पर क्लब में मिलते है .”
“ मनन का फ़ोन क्यों आया था ? “
“ मै लास्ट संडे नहीं गया था तो पूछ रहा था कि शाम को आऊँगा की नहीं .”
“ तो तुमने क्या जवाब दिया ?”
“ मैंने मना कर दिया . अब प्लीज़ मुझे मैच देखने दो .”
“ तुमने मना क्यों कर दिया ? तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहते ..”
“ वहाँ सब लोग तेज म्यूज़िक पर डान्स फ़्लोर पर होते हैं .. मुझे लगा तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगेगा . “ इतनी देर में पहली बार अमित ने टीवी पर से नज़रें हटाकर मुझपर टिकाई थी . मैं भावुक हो गई . और मन ही मन सोचने लगी मैं तो आजतक यही सुनती आई हूँ कि शादी के बाद लड़की को अपनी पसंद - नापसंद , शौक़ , अरमान ताक पर रखने पड़ते हैं पर यहाँ तो फ़िज़ाओं का रुख़ बदला हुआ सा था .
“ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है , और जब इतना क़ीमती तोहफ़ा हो तो जान भी हाज़िर है . एनीथिंग फ़ॉर यू .. जाना ,”कहते हुए उसने मेरी आँखों से ढुलकते आँसूओं को अपनी हथेली में भर लिया .
शाम छः बजे तैयार होकर मैं अमित के सामने खड़ी हो गई . ब्लैक ईव्निंग गाउन में ग्लैमरस लुक में वो मुझे अपलक देखता ही रह गया .
“ मै पूछ सकता हूँ , बेमौसम कहाँ बिजली गिराने का इरादा है ? कहते हुए वह मुझे अपनी बाँहों में भरने लगा तो मैंने हँसते हुए उसे पीछे धकेल दिया .
“ रात को मैं करूँ शर्मिंदा .. मैं हूँ पार्टी परिंदा ..” मैंने अदा से डान्स करते हुए कहा . मेरे इस नए अन्दाज़ से वो बहुत ख़ुश लग रहा था .
राजपूताना क्लब हाउस में बनाव श्रिंगार से तो मैं अमित के दोस्तों से मैच कर रही थी जिसमें कई लड़कियाँ भी थी ,पर मन को कैसे बदलती . वहाँ सब लोग लाउड म्यूज़िक के साथ डान्सिंग फ़्लोर पर थिरक रहे थे . कुछ देर तो मैं भी उन जैसा बनने की कोशिश करती रही . फिर थोड़ी देर बाद खिड़की के पास लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने स्लिंग की चैन को अपनी अंगुलियों पर घुमाने लगी . उस दिन के बाद मुझे दुबारा उस क्लब में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई ना कभी अमित ने मुझे चलने के लिए कहा .
शादी के कुछ दिनों बाद ही अमित की बर्थडे थी . मैं बहुत दिनों से उसकी एक पेंटिंग बनाने में लगी हुई थी । मैंने वह पेंटिंग और एक छोटी सी कविता बना उसके सिरहाने रख दी .सुबह उठकर मै किचन में अमित की पसंद का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में जुटी हुई थी .
“ ये पेंटिंग तुमने बनाई है ?” अमित ने पीछे से आकर मुझे बाँहों में भरते हुए पूछा .
“ हाँ .. कोई शक ? “
“ नहीं तुम्हारी क़ाबिलियत पर कोई शक नहीं , पर स्वीटी मुझे लगता है तुम्हारे हाथ ये चाकू नहीं बल्कि पैन और ब्रश पकड़ने के लिए बने है . उसने मेरे हाथ से चाकू लेते हुए कहा .
" मम्मा का फ़ोन आया था वो दो - तीन दिन के लिए मुझे अपने पास बुला रही हैं ." एक दिन उसके ऑफ़िस से आते ही मैंने कहा .
“ मेरी जान के चले जाने से मेरी तो जान ही निकल जाएगी .
" ज़्यादा रोमांटिक होने की ज़रूरत नहीं है . टीवी , लैपटॉप और वेबसिरीज़ .. इतनी सौतन है तो मेरी तुम्हारा दिल लगाने के लिए .” मैंने बनावटी ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा .
" ओके! पर प्रॉमिस मी , अपने बर्थ्डे के दिन ज़रूर आ जाओगी . ." उसकी बर्थडे के अगले हफ़्ते ही मेरी बर्थडे थी . शादी के बाद अमित से बिछुड़ने का ये पहला मौक़ा था . किसी ने सही कहा है इंसान की क़ीमत उससे दूर रहकर ही होती है . तीन दिन मम्मा के पास बिता मैं मेरे बर्थडे वाली शाम को वापिस आ गई . मेरे घर पहुँचने से पहले ही अमित मुझे रिसीव करने के लिए बड़ा सा लाल गुलाब का गुलदस्ता लिए लॉन में खड़ा था . मुझे देखते ही मुझे बाँहों में भर लिया और फिर गोदी में उठा मुझे गेस्ट रूम तक लेकर गए . वहाँ का नज़ारा देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था .. वहाँ होम थीएटर की जगह स्टडी टेबल ने और अमित के मिनी बार की जगह बुक शेल्व्स ने ले ली थी . मैं इन सब बदलावों को छूकर देखने लगी कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही .

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